रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के
“जिस ने मेरे सहाबा को गाली दी, उस पर अल्लाह तआला, फ़रिश्तों और तमाम लोगों की लअनत हो. अल्लाह तआला के नज़दीक न उस की फ़र्ज़ इबादत मक़बूल होती है और न ही नफ़ल इबादत.”
(अद दुआ लित तबरानी, रक़म नं- २१०८)
सहाबए किराम(रज़ि.) के दिलों में रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की बे पनाह मुहब्बत
ऐक मर्तबा ऐक सहाबी हज़रत रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुए और फ़रमायाः ए अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ! मेरे दिल में आप की इतनी ज़्यादह मुहब्बत है के जब भी मुझे आप का ख़्याल आता है, तो मेरे ऊपर आप की मुहब्बत इस क़दर ग़ालिब आ जाती है के जब तक आप की ज़ियारत(दर्शन) न कर लुं, मुझे चेन नहीं आता है.
(उन्होंने मज़ीद अर्ज किया) ऐ अल्लाह के रसूल(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)! मुझे यह ख़्याल बे चेन कर रहा है के अगर अल्लाह तआला मुझे जन्नत से सरफ़राज़ फ़रमाए (जन्नत में दाख़िल करेंगें), तो मेरे लिए आप का दीदार(दर्शन) करना इन्तेहाई मुश्किल होगा, क्युंकी आप तो जन्नत के इन्तेहाई आला मक़ाम में होंगे.
रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)ने उन को तसल्ली दी और निम्नलिखित आयत की तिलावत कीः
وَمَن يُطِعِ اللَّـهَ وَالرَّسولَ فَأُولـٰئِكَ مَعَ الَّذينَ أَنعَمَ اللَّـهُ عَلَيهِم مِنَ النَّبِيّينَ وَالصِّدّيقينَ وَالشُّهَداءِ وَالصّالِحينَ وَحَسُنَ أُولـٰئِكَ رَفيقًا ﴿٦٩﴾
और जो शख़्स इताअत और फ़रमां बरदारी करे(बात माने) अल्लाह तआला की और रसूल की. पस ऐसे मुतीअ और फ़रमां बरदार(बात मानने वाले) लोग उन बरगुज़ीदा(माफ़ किए हुए, नेक) बंदों के साथ होंगे, जिन पर अल्लाह तआला ने अपना ख़ासुल ख़ास इन्आम फ़रमाया यअनी अंबिया किराम और सिद्दीक़ीन और शुहदा औरू सालिहीन के साथ होंगे. यह गीरोह(जमाअत) बेहतरीन रफ़ीक़(साथी) हैं.