अज़ान सुन कर दुरूद शरीफ़ पढ़ना

عن جابر رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: من قال حين يسمع النداء اللهم رب هذه الدعوة التامة والصلاة القائمة آت محمدا الوسيلة والفضيلة وابعثه مقاما محمودا الذي وعدته حلت له شفاعتي يوم القيامة (إنك لا تخلف الميعاد) (صحيح البخاري، الرقم: ٦۱٤، وأما زيادة إنك لا تخلف الميعاد فقد ذكرها البيهقي في السنن الكبرى،الرقم: ۱۹۳۳، وقال عنها السخاوي في المقاصد الحسنة صـ ۳٤۳: وهو عند البيهقي في سننه فزاد في آخره مما ثبت عند الكشميهني في البخاري نفسه إنك لا تخلف الميعاد)

हज़रत जाबिर (रज़ि.) से मरवी है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः जो व्यक्ति अज़ान सुन कर निम्नलिखित दुआ पढ़ेगा, वह क़यामत के दिन मेरी शफ़ाअत का हक़ दार होगाः

اللهم رب هذه الدعوة التامة والصلاة القائمة آت محمدا الوسيلة والفضيلة وابعثه مقاما محمودا الذي وعدته(إِنَّكَ لَاتُخْلِفُ الْمِيْعَاد)

“ए अल्लाह ! इस मुकम्मल दुआ और क़ाईम होनेवाली नमाज़ के रब ! मुहमंद(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को वसीला(जन्नत में एक बुलंद रूतबा), फ़ज़ीलत(ख़ास रहमतें) और मक़ामे महमूद(क़यामत के दिन शफ़ाअते कुबरा का मक़ाम) इनायत(अर्पण) फ़रमाए, जिस का आप ने वादा किया है. बेशक आप वादा ख़िलाफ़ी नहीं करते हैं.”

जुम्आ के दिन एक हज़ार मर्तबा दुरूद शरीफ़ पढ़ने की फ़ज़ीलत

हज़रत अबु अब्दुर्रहमान अलमुक़री (रह.) फ़रमाते हैं के ख़ल्लाद बिन कषीर (रह.) मरने के क़रीब थे. उन के तकिये के नीचे एक काग़ज़ का टुकड़ा मिला, जिस पर लिखा हुवा था के

هٰذِهِ بَرَاءَةٌ مِنَ النَّارِ لِخَلَّادِ بْنِ كَثِيْرٍ‎

यह ख़ल्लाद बिन कषीर के लिये जहन्नम की आग से आज़ादी का परवाना है

लोगों ने ख़ल्लाद बिन कषीर की बीवी से उस की वजह पूछी, तो उन्होंने जवाब दिया के उस का मामूल (नियम) था के हर जुम्आ को निम्नलिखित दुरूद को एक हज़ार मर्तबा पढ़ते थेः

اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰى مُحَمَّدٍ النَّبِيِّ الْأُمِّيِّ

ए अल्लाह ! दुरूद भेज हमारे आक़ा मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर जो नबिये उम्मी हैं. (तबक़ातुल मुहद्दिषीन)

‎يَا رَبِّ صَلِّ وَ سَلِّم دَائِمًا أَبَدًا عَلَى حَبِيبِكَ خَيرِ الْخَلْقِ كُلِّهِمِ‏‎

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