मामूलात की पाबंदी

शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः

“एक अहम बात यह है के ज़िक्र और मामूलात का बहोत प्रबंध रखा जाए, में ने हज़रत मौलाना हुसैन अहमद मदनी (रह.) और अपने चचा जान (हज़रत मौलाना मोहम्मद इल्यास (रह.)) को अख़ीर उमर तक ज़िक्र का प्रबंध करते हुए देखा में ने अपने वालिद साहब (रह.) और हज़रत मौलाना हुसैन अहमद मदनी (रह.) दोनों को अख़ीर शब में तन्हाई में रोते और गिड़गिड़ाते हुए देखा यह दोनों बिलकुल एसा रोते थे जैसा मकतब में बच्चा पिट रहा हो.” (मलफ़ूज़ात हज़रत शैख़ (रह.), पेज नं-११२)

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