ए अल्लाह ! मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की शफ़ाअते कुबरा (जब लोग मैदाने हशर में परेशानी के आलम में होंगे) और उन का दरजा बुलंद फ़रमा और दुनिया और आख़िरत में उन की आरज़ू पूरी फ़रमा, जिस तरह तू ने हज़रत इब्राहीम (अलै.) और मूसा (अलै.) को अता फ़रमाया है...
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