शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“अगर माल की ज़कात न निकाली जाए तो फिर वह ज़कात वाला माल दूसरे माल को भी खा जाता है, ज़कात देन से माल में कमी वाक़िअ नहीं होती, लेकिन ज़कात न देने से माल रेहता नही, आग लग जाए, मुक़द्दमा में ख़र्च हो जाए, दुख बीमारी में ख़र्च हो जाए, मतलब यह है के किसी न किसी सूरत से वह माल हाथ से निकल जाता है.” (मलफ़ूज़ात हज़रत शैख़ (रह.), पेज नं-३९)
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