मस्जिद में दाख़िल होने और मस्जिद से निकलने के समय दुरूद शरीफ़ पढ़ना

عن فاطمة رضي الله عنها قالت: كان رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا دخل المسجد صلى على محمد وسلم وقال رب اغفر لي ذنوبي وافتح لي أبواب رحمتك وإذا خرج صلى على محمد وسلم وقال رب اغفر لي ذنوبي وافتح لي أبواب فضلك (سنن الترمذي، الرقم: ٣١٤، وحسنه)

हज़रत फ़ातिमा रदि अल्लाहु ‘अन्हा फ़रमाती हैं के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब मस्जिद में दाख़िल होते, तो पेहले दुरूद शरीफ़ पढ़ते फिर निम्नलिखित दुआ पढ़तेः

رَبِّ اغْفِرْ لِيْ ذُنُوْبِيْ وَافْتَحْ لِيْ أَبْوَابَ رَحْمَتِك

(तर्जुमाः ए मेरे अल्लाह! मेरे गुनाहों को माफ़ फ़रमा और मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाज़े खोल दे.)

इसी तरह जब मस्जिद से निकलते, तो पेहले दुरूद शरीफ़ पढ़ते फिर निम्नलिखित दुआ पढ़तेः

رَبِّ اغْفِرْ لِيْ ذُنُوْبِيْ وَافْتَحْ لِيْ أَبْوَابَ فَضْلِك

 मेरे परवरदिगार! मेरे गुनाहों को बख़्श दे और मेरे लिए अपनी नेअमत के दरवाज़े खोल दे.

“सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम” पूरे पूरा लिखना

हज़रत उबैदुल्लाह बिन उमर क़वारीरी रहिमहुल्लाह फ़रमाते हैं के मेरा एक इन्तिहाई क़रीब दोस्त था. जो पेशे से कातिब था.

जब उस का इन्तिक़ाल हो गया तो मैं ने उस को सपने में देखा. मैं ने उस से पूछा के अल्लाह त’आला ने तुम्हारे साथ क्या मामला फ़रमाया?

उस ने जवाब दिया कि अल्लाह त’आला ने मेरी मग़फ़िरत फ़रमा दी.

मैं ने उस से पूछा के तुम्हारी मग़फ़िरत कैसे हुई?

उस ने जवाब दिया कि मेरी आदत थी के जब भी नबी सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम का मुबारक नाम लिखता, तो उस के साथ पूरे पूरा “सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम” लिखा करता था. अल्लाह त’आला को मेरी यह अदा पसंद आई और मेरी मग़फ़िरत फ़रमा दी और मुझे ऐसी ऐसी नेमतें अता फ़रमाई के न तो किसी आंख ने उन को देखा है और न किसी कान ने सुना है और न ही किसी के दिल में उन का ख़्याल गुज़रा है.

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वालों के लिए ख़ुशख़बरी

हज़रत मोहम्मद बिन मालिक (रह.) फ़रमाते हैं:

में बग़दाद गया ताकि क़ारी अबु बकर बिन मुजाहिद (रह.) के पास कुछ पढ़ुं. हम लोगों की एक जमाअत उन की ख़िदमत में हाज़िर थी और क़िराअत हो रही थी इतने में एक बड़े मियां उन की मजलिस में आए जिन के सर पर बहोत ही पुराना इमामा था, एक पुराना कुरता था, एक पूरानी सी चादर थी. अबु बकर उन को देख कर खड़े हो गए और उन को अपनी जगह बिठाया और उन से उन के घरवालों की अहलो अयाल की ख़ैरियत पूछी.

उन बड़े मियां ने कहा रात मेरे एक लड़का पैदा हुवा, घरवालों ने मुझ से घी और शहद की फ़रमाईश की. शैख़ अब बकर (रह.) केहते हैं के में उन का हाल सुन कर बहोत ही रंजीदा हुवा और उसी रंजो ग़म की हालत में मेरी आंख लग गई तो में ने ख़्वाब में नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ज़ियारत की.

हुज़ूरे अक़दस (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया इतना रंज क्युं है, अली बिन ईसा वज़ीर के पास जा और उस को मेरी तरफ़ से सलाम केहना और यह अलामत बताना के तु हर जुम्आ की रात को उस वक़्त तक नहीं सोता जब तक के मुझ पर एक हज़ार मर्तबा दुरूद न पढ़ ले. और इस जुम्आ की रात में तु ने सात सो मर्तबा पढ़ा था के तेरे पास बादशाह का आदमी बुलाने आ गया. तु वहां चला गया और वहां से आने के बाद तु ने इस मिक़दार को पूरा किया. यह अलामत बताने के बाद उस से केहना के इस नौमवलूद(नवजात) के वालिद को सो दीनार (अशरफ़ियां) दे दे. ताकि यह अपनी ज़रूरियात में ख़र्च कर ले.

क़ारी अबु बकर उठे और उन बड़े मियां नौमवलूद(नवजात) के वालिद को साथ लिया और दोनों वज़ीर के पास पहुंचा. क़ारी अबु बकर ने वज़ीर से कहा इन बड़े मियां को हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने तुम्हारे पास भेजा है. वज़ीर खड़े हो गए और उन को अपनी जगह बिठाया और उन से क़िस्सा पूछा.

शैख़ अबु बकर ने सारा क़िस्सा सुनाया जिस से वज़ीर बहोत ही ख़ूशी हुई और अपने ग़ुलाम को हुकम दिया के एक तोड़ा निकाल कर लाए (तोड़ा हिमयानी थैली जिस में दस हज़ार की मिक़दार होती है) उस में से सो दीनार उस नौमवलूद के वालिद को दिए, उस के बाद सो और निकाले, ताकि शैख़ अबु बकर को दे, शैख़ ने उन के लेने से इन्कार किया.

वज़ीर ने ज़िद(इसरार) किया के उन को ले लिजिए. इसलिए के यह उस बशारत की वजह से है जो आप ने मुझे उस वाक़िए के मुतअल्लिक़ सुनाई. इसलिए के यह वाक़िया यअनी एक हज़ार दुरूद वाला एक राज़ है जिस को मेरे और अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता. फिर सो दीनार और निकाले और यह कहा के यह उस ख़ुशख़बरी के बदले में हैं के तुम ने मुझे उस की बशारत सुनाई के नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) को मेरे दुरूद शरीफ़ पढ़ने की इत्तेलाअ है. और फिर सो अशरफ़ियां और निकालीं और यह कहा के यह उस मशक़्क़त के बदले में है जो तुम को यहां आने में हुई.

इसी तरह सो सो अशरफ़ियां निकालते रहे, यहां तक के एक हज़ार अशरफ़ियां निकालें. मगर उन्होंने यह केह कर इन्कार कर दिया के हम इस मिक़दार यअनी सो दीनार से अधिक नहीं लेंगे जिन का हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने हुकम फ़रमाया. (फ़ज़ाईले दुरूद शरीफ़, पेज नं-१७३)

يَا رَبِّ صَلِّ وَسَلِّم دَائِمًا أَبَدًا عَلَى حَبِيبِكَ خَيرِ الْخَلْقِ كُلِّهِمِ

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