शौहर की वफात के बाद बीवी की इद्दत के हुक्म
(१) जब किसी औरत के शौहर का इन्तिका़ल हो जाए, तो उस पर ‘इद्दत में बैठना वाजिब है।
ऐसी औरत की ‘इद्दत (जिस के शौहर का इन्तिका़ल हो जाए और वो हा़मिला {प्रेगनेंट} न हो) चार महीने दस दिन है।
यह हुक्म उस सूरत में होगा, जब शौहर का इन्तिका़ल क़मरी महीने की पहली तारीख पर हो जाए।
(क़मरी महीना= वह महीना जो चांद की रफ्तार के मुताबिक हो ना कि सूरज की रफ्तार के मुताबिक)
(२) अगर शौहर का इन्तिका़ल क़मरी महीने के दरम्यान हो जाए (यानी शौहर का इन्तिका़ल क़मरी महीने की दूसरी तारीख को या उसके बाद हो जाए) तो इस सूरत में बीवी की ‘इद्दत १३० (एक सो तीस) दिन होगी।
(३) अगर औरत हा़मिला (प्रेगनेंट) हो और उसके शौहर का इन्तिका़ल हो जाए, तो उस सूरत में उसकी ‘इद्दते ह़मल {गर्भ) रखने (बच्चे की पैदाइश) तक होगी। जब बचचा पैदा हो जाए, तो उसकी इद्दत पूरी हो जाएगी, चाहे बच्चे की पैदाइश तक थोड़ी मुद्दत गुज़रे या ज़्यादा।
(४) औरत शौहर के घर में इद्दत गुज़ारेगी (यानी, उस घर में इद्दत गुज़ारेगी, जहां वो शौहर के साथ उसकी वफात के समय रह रही थी)।
औरत के लिए बगैर ज़रूरत घर से निकलना जायज़ नहीं है.
(५) अगर घर से बाहर हो और उसको शौहर के इन्तिका़ल की ख़बर मिले, तो उसे तुरंत घर लौटकर इद्दत में बैठना चाहिए।
(६) अगर औरत अपने शौहर के इन्तिका़ल की वजह से ईदत गुज़ार रही है, तो वो अपनी जरूरतों (खा़ना, कपड़ा, वगैरह) का इन्तिजा़म खुद करे।
औरत के लिए अपने शौहर के कुल तरका का (छोड़ी हुई संपत्ति,माल) उपयोग करना जायज़ नहीं है; क्योंकि इस माल में दूसरे वारिसों का भी हक है.
लेकिन, अपने शौहर की विरासत में जो माल उसका हिस्सा है, वह उस माल का उपयोग कर सकती है।
(७) अगर किसी औरत के शौहर का इन्तिक़ाल उसके वतन के बाहर हो जाए, तो उसके लिए जायज़ नहीं होगा कि वह जनाज़ा और तद्फीन की जगा की तरफ सफर करे; कियूंकि उसकी इद्दत उसके शौहर के इन्तिक़ाल के फौरन बाद शुरू होती है।
(८) औरत की इद्दत उसके शौहर के इन्तिक़ाल के फौरन बाद शुरू हो जाती है; चाहे औरत को शौहर के इन्तिक़ाल के बारे में जानकारी हो या न हो।
लिहाज़ा अगर इद्दत की मुद्दत गुज़रने के बाद (चार महीने दस दिन के बाद) औरत को उसके शौहर के इन्तिक़ाल की ख़बर मिली, तो उसकी इद्दत पूरी हो गई।
इसलिए उसे दूसरी इद्दत में बैठना लाज़िम नहीं होगा और न वो इद्दत की मुद्दत के दौरान घरसे निकलने की वजह से गुनेहगार होगी; क्यूँकि उसको उसके शौहर के इन्तिक़ाल के बारे में मालूम नहीं था।
अगर इद्दत का वक़्त खत्म होने से पेहले औरत को उसके शौहर के इन्तिक़ाल के बारे में पता चला, तो उसके उपर लाज़िम होगा कि बाकि वक़्त के लिए इद्दत में बैठे। वो वक़्त जिस में उसे शौहर के इन्तिक़ाल के बारे में मालूम नहीं था, वो वक़्त इद्दत में शुमार होगा।
(९) औरत के लिए ‘इद्दत के दौरान रोज़ी-रोटी कमाने के लिए घर से निकलना जाइज़ नहीं है।
अलबत्ता अगर उसके पास जीविका के लिए और गुज़रान चलाने के लिए कुछ न हो और कोई उसकी मदद करने वाला भी न हो, तो उस के लिए रोज़ी-रोटी कमाने के लिए घर से निकलना दुरूस्त है; इस शर्त के साथ कि वो रात होने से पहले घर लौट आए और रात घर में गुज़ारे।
किसी सही और उचित मजबूरी के बगैर इद्दत में बैठने वाली औरत को हुक्म दिया गया है कि वो घर से न निकले।
इस लिए औरत के लिए इद्दत के समय में किसी प्रोग्राम में जाना या बच्चो को स्कूल वगैरह रखने जाना और लेने जाना जाइज़ नहीं है।
(१०) औरत पर इद्दत के दौरान एक कमरे में बैठना ज़रूरी और लाज़िम नहीं है; बल्कि वह घर के किसी भी हिस्से में जा सकती है।
(११) इद्दत के दौरान औरत घर के बाहरी हिस्से (आंगन या घर के पिछले हिस्से) में भी जा सकती है; बशर्ते कि वह अपने घर के इहाता में यानी चारदीवारी में हो। (कोई गैर-महरम आदमी उसे न देख सकता हो।)
(१२) इद्दत के दौरान औरत के लिए सगाई करना और समारोहों (शादी-विवाह, वलीमा, मुहल्ले की तालीम वग़ैरह) में जाना जाइज़ नहीं है।
(१३) जिस औरत के शौहर का इन्तिक़ाल हो गया हो और वह इद्दत में हो, उसका मासिक खर्च उसी के ज़िम्मे होंगे।
उसके शौहर का खानदान उसके खर्चों के लिए ज़िम्मेदार नहीं होगा; लेकिन अगर वह अपनी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती है, तो उसके (औरत के) घरवालो को उसकी ज़रूरतों को पूरा करने में उसकी मदद करनी चाहिए।