हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ि.) फ़रमाया करते थे के “मस्ज़िद में दाख़िल होने के समय दायां पैर पेहले दाखिल करना और निकलते समय बायां पैर पेहले निकालना सुन्नत में से है.”...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-२१)
अज़ान के जवाब की तरह इक़ामत का भी जवाब दें और जब قد قامت الصلاة (क़द क़ामतीस सलाह) कहा जाए, तो उस के जवाब में कहे...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-२०)
हज़रत ज़ियाद बिन हारिष(रज़ि.) फ़रमाते हैं के एक मर्तबा में रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के साथ सफ़र में था, मुझे रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने आदेश दिया के में फ़जर की अज़ान दुं...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१९)
इक़ामत की सुन्नतें और आदाब (१) इक़ामत के हदर के साथ(जल्दी जल्दी) केहना.[1]
عن جابر رضي الله عنه أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال لبلال: إذا أذنت فترسل وإذا أقمت فاحدر...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१९)
इक़ामत के कलिमात अज़ान के कलिमात की तरह हैं. इन दोनों के कलिमात में मात्र इतना फ़र्क़ है के इक़ामत में حَيَّ عَلى الْفَلَاح (हय्य अलल फ़लाह) के बाद قَدْ قَامَتِ الصَّلاَة قَدْ قَامَتِ الصَّلاَة...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१७)
اللّٰهُمَّ إِنَّ هٰذَا إِقْبَالُ لَيْلِكَ وَإِدْبَارُ نَهَارِكَ وَأَصْوَاتُ دُعَاتِكَ فَاغْفِرْ لِيْ
ए अल्लाह ! बेशक यह रात की शरूआत और दीन की इन्तेहा है और यह आप के बंदों(मुअज़्ज़िन) की आवाज़े हैं जो आप की तरफ़ बुला रहे हैं. आप मेरी मग़फ़िरत फ़रमाइए...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१६)
अज़ान के बाद की दुआः (१) अज़ान के बाद रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूद भेजें फिर निम्नलिखित दुआ पढ़ें..
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१५)
अज़ान दीने इस्लाम का महान और नुमायां शिआर है और बड़ी महत्तवता का दरज्जा रखता है(अहमियत का हामिल)...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१४)
अज़ान देने का तरीक़ाः
اَللهُ أَكْبَرْ اللهُ أَكْبَرْ
अल्लाह तआला सब से बड़े हैं, अल्लाह तआला सब से बड़े हैं...
और पढ़ो »अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१३)
(१) अगर बहोत सी क़ज़ा नमाज़ें एक साथ अदा की जाऐं, तो हर नमाज़ के अलग अलग अज़ान देना जाईज़ है और अगर तमाम क़ज़ा नमाज़ों के लिए एक ही अज़ान दी जाए, तो भी काफ़ी है. यहांतक के हर नमाज़ के लिए इक़ामत अलग होनी चाहिए...
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