मौलवीओ ! तुम को मालूम है हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ि.) बड़े ताजिर थे. उन्होंने अपना सब कुछ हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) और आप के ख़ादिमों पर ख़र्च कर दिया...
और पढ़ो »उसूल की पाबंदी
“दुनिया में कोई साधारण से साधारण काम भी सिद्धांत का पालन और उचित प्रकिया अपनाए बग़ैर नही होता. जहाज़, नाव, रेल, मोटर सब सिद्धांत से ही चलते हैं यहां तक की सालन रोटी तक भी सिद्धांत से ही पकती है.”
और पढ़ो »हिकमत की बात
“एक साहब ने बड़ी हिकमत की बात कही सोने के पानी से लिखने के क़ाबिल है वह यह के अगर बच्चा(बालक) किसी चीज़ को मांगे तो या तो उस की दरख़्वासत को शुरू ही में पूरी कर दे और यदी अगर पेहली बार में इनकार(मना) कर दिया तो फिर चाहे बच्चा(बालक) कितनी ही ज़िद करे कदापी उस की ज़िद पूरी न करे वरना आईन्दा उस को यही आदत पड़ जाएगी”...
और पढ़ो »वालिदैन के इन्तिक़ाल के बाद उनकी आझाकारिता का तरीक़ा
“जिस किसी ने अपने माता-पिता की ज़िंदगी में उन की सेवा तथा आझा का पालन न किया हो बाद में उन के इन्तिक़ाल के बाद उस की तलाफ़ी (प्रायश्र्वित) की शकल भी हदीष से षाबित है. वह यह के...
और पढ़ो »आख़िरत की तय्यारी
इन्सान का क़याम ज़मीन के ऊपर बहोत कम है और ज़मीन के नीचे उस को उस से बहोत ज़्यादह क़याम करना है. या युं समझो के दुन्या में तुम्हारा क़याम है बहोत अल्प समय के लिए, और उस के बाद जिन जिन स्थानों पर ठहरना है...
और पढ़ो »दोस्ती और दुश्मनी में ऐअतेदाल(संयम) की ज़रूरत
हद से गुज़र कर हर चीज़ मज़मूम(निंदा के लाईक़) है. हदीष में तालीम (शिक्षा) है के हद से गुज़र कर दोस्ती मत करो मुमकिन है के किसी दीन नफ़रत हो जावे. इसी तरह हद से गुज़र कर दुश्मनी मत करो मुमकिन है के फिर तअल्लुक़ात(रिश्ते) दोस्ती के हो जाऐं...
और पढ़ो »अपने आमाल(कार्यों) से संतुष्ट नहीं होना
मेरे दोस्तो ! बहोत एहतियात रखो अपनी किसी हालत को अच्छा समझकर उस पर इतरावो मत, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद (रज़ि.) का फ़रमान है के ज़िन्दा आदमी ख़तरे से बाहर नहीं...
और पढ़ो »दीन में तरक़्क़ी की ज़रूरत
"दीन में ठ़ेहराव नहीं या तो आदमी दीन में तरक़्क़ी कर रहा होता है और या नीचे गिरने लगता है. उस का उदाहरण युं समझो के...
और पढ़ो »ज़िक्र से संपूर्ण फ़ाइदा प्राप्त करने की शर्त
ज़िक्र बड़ी बरकत की चीज़ है मगर उस की बरकत वहीं तक है के मुनकिरात से बचा रहे, अगर एक व्यक्ति फ़र्ज़ नमाज़ न पढ़े और नफ़लें पढ़े...
और पढ़ो »दीन के लिए प्रयास करना
हमारे बुज़ुर्गों का एक मक़ोला(बात) है, “जो हमारी इन्तीहा(अंत) को देखे वह नाकाम और जो इब्तिदा(शुरूआत) को देखे वह कामयाब”, इसलिए के इब्तिदाई जिंदगी (प्रारंभिक जीवन) मुजाहदों(कडा संघर्ष) में गुज़रती है और अख़ीर में फ़ुतुहात(सफ़लताओं) के दरवाज़े खुलते हैं...
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