मलफ़ूज़ात

इस्लाम को ज़िन्दा करना

अगर मुसलमान अपनी इस्लाह कर लें और दीन उन में रचबस जाये (स्थापित हो जाये) तो दीन तो वह है ही, लेकिन दुन्यवी मसाईब का भी जो कुछ आजकल उस पर हुजूम है, इनशा अल्लाह चंद रोज़ में काया पलट हो जाये...

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जीवन के हर पहलू में इत्तेबाये सुन्नत की कोशिश करे

मेरे चचा जान (यअनी हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब (रह.)) भी ‎मुझको इत्तेबाए सुन्नत की नसीहत फ़रमाई थी और यह के अपने ‎दोस्तो को भी उस की ताकीद ज़रूर करते रेहना...

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इस्लाम में कलिमे की हक़ीक़त

हक़ीक़ी इस्लाम यह है के मुसलमान में “ला ईलाह इलल्लाह” की हक़ीक़त पाई जाए. और उस की हक़ीक़त यह है के उस का एतेक़ाद करने के बाद अल्लाह तआला की बंदगी का अज़मो इरादा दिल में पैदा हो...

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पवित्र पूर्वजों के जीवन का अध्ययन सुन्नत की ओर ले जाता है

अपने पूर्वजों (अकाबिर) के हालात तथा वाक़िआत ख़ूब देखा करो, पढ़ा करो, सहाबा में भी मुझे देखने से हर रंग के मिले हैं, इसी तरह अपने पूर्वजों (अकाबिर) भी के उन में भी विभीन्न रंग के में ने पाए हैं...

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अलहे हक़ से दुश्मनी न होना ग़नीमत है

हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः   “यह भी नफ़अ से ख़ाली नही के अगर इन्सान कुछ भी न करे तो कम से कम उस को अहले हक़ से दुश्मनी (दीली बुग़्ज़ और कीना) तो न हो यह दुश्मनी बहोत ही ख़तरनाक चीज़ है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल …

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उलमा और बड़ो की बेअदबी अपना ही नुक़सान है

“उलमा और अईमए दीन की बेअदबी तथा उन के साथ बदगुमानी यह तो बहोत बडी बात है, सामान्य आदमी सामान्य मुसलमान की आबरू रेज़ी और बदगुमानी यह भी किसी तरह जाईज़ नहीं, उन बड़ों में से ख़ुदा न ख्वास्ता अगर किसी की बे अदबी हो गई, तो याद रखो के अपना सब कुछ खो बेठोगे.”...

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दीन के काम की बरकात

हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब(रह.) ने एक मर्तबा फ़रमायाः “असल तो यही है के रज़ाए इलाही और उख़रवी अजर ही के लिए दीनी काम किया जाए, लेकिन तरग़ीब में मोक़े के हिसाब से दुन्यवी बरकात का भी ज़िक्र करना चाहिए. बाज़ आदमी एसे होते हैं के शुरूआतमें दुन्यवी बरकात ही …

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राहत पहोंचाना फ़र्ज़ है

हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः   “में ने तो हंमेशा इस का ख़्याल रखा के हुदूदे शरअ से तजावुज़ न हो. इस लिए में ने अपने बुज़र्गो की जुतियां उठाने की ख़िदमत नहीं की. महज़ इस ख़्याल से के वह पसंद न करते थे कहीं …

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