अपने पूर्वजों (अकाबिर) के हालात तथा वाक़िआत ख़ूब देखा करो, पढ़ा करो, सहाबा में भी मुझे देखने से हर रंग के मिले हैं, इसी तरह अपने पूर्वजों (अकाबिर) भी के उन में भी विभीन्न रंग के में ने पाए हैं...
और पढ़ो »दीनी इल्म हासिल करने का मक़सद
इल्म का सब से पेहला और अहम तक़ाज़ा यह है के आदमी अपने जीवन का एहतेसाब (हिसाब) करे, अपने फ़राईज़ और अपनी कोताहियों को समझे...
और पढ़ो »अलहे हक़ से दुश्मनी न होना ग़नीमत है
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः “यह भी नफ़अ से ख़ाली नही के अगर इन्सान कुछ भी न करे तो कम से कम उस को अहले हक़ से दुश्मनी (दीली बुग़्ज़ और कीना) तो न हो यह दुश्मनी बहोत ही ख़तरनाक चीज़ है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल …
और पढ़ो »उलमा और बड़ो की बेअदबी अपना ही नुक़सान है
“उलमा और अईमए दीन की बेअदबी तथा उन के साथ बदगुमानी यह तो बहोत बडी बात है, सामान्य आदमी सामान्य मुसलमान की आबरू रेज़ी और बदगुमानी यह भी किसी तरह जाईज़ नहीं, उन बड़ों में से ख़ुदा न ख्वास्ता अगर किसी की बे अदबी हो गई, तो याद रखो के अपना सब कुछ खो बेठोगे.”...
और पढ़ो »दीन के काम की बरकात
हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब(रह.) ने एक मर्तबा फ़रमायाः “असल तो यही है के रज़ाए इलाही और उख़रवी अजर ही के लिए दीनी काम किया जाए, लेकिन तरग़ीब में मोक़े के हिसाब से दुन्यवी बरकात का भी ज़िक्र करना चाहिए. बाज़ आदमी एसे होते हैं के शुरूआतमें दुन्यवी बरकात ही …
और पढ़ो »राहत पहोंचाना फ़र्ज़ है
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः “में ने तो हंमेशा इस का ख़्याल रखा के हुदूदे शरअ से तजावुज़ न हो. इस लिए में ने अपने बुज़र्गो की जुतियां उठाने की ख़िदमत नहीं की. महज़ इस ख़्याल से के वह पसंद न करते थे कहीं …
और पढ़ो »सुलहा की सूरत इख़्तियार करने में भी फ़ाईदा है
तो दोस्तो ! सूरत बना लो, अल्लाह तआला हिफ़ाज़त भी करेगा और तरक़्क़ी भी मिलेगी. बेटिकट अन्दर भी चले गए, सब ही कुछ हुवा...
और पढ़ो »सब से ज़्यादह नफ़रत के क़ाबिल चीज़ तकब्बुर है
सब से ज़्यादह नफ़रत की चीज़ मेरे ज़हन में तकब्बुर है इतनी नफ़रत मुझे किसी गुनाह से नही जितनी इस से है. युं और भी बड़े बड़े गुनाह हैं जैसे ज़िना (व्याभिचार), शराब पीना वग़ैरह, लेकिन...
और पढ़ो »दीन की तब्लीग़ में मेहनत
“लोगों को दीन की तरफ़ लाने और दीन के काम में लगाने की तदबीरें सोचा करो (जैसे दुनिया वाले अपने दुनयावी मक़सदों के लिए तदबीरें सोचते रहते हैं) और जिस को जिस तरह से मुतवज्जेह कर सकते हो उस के साथ उसी रास्ते से कोशिश करो.”...
और पढ़ो »माता-पिता की फ़रमांबरदारी रिज़्क़ में कुशादगी का ज़रिआ
“मईशत और रोज़ी में बढ़ोतरी और बरकत का सबब वालीदैन की आज्ञाकारिता तथा फ़रमांबरदारी है, वालिदैन का आज्ञाकारित रोज़गार की तंगी में मुबतला नहीं होता और जो वालिदैन की नाफ़रमानी करने वाला हो वह एक न एक दिन इस परेशानी में मुबतला हो कर रहता है.”...
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