हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी रह़िमहुल्लाह ने एक मर्तबा इर्शाद फरमाया: मैं खैर ख्वाही से अर्ज़ करता हूँ, सब सुन लें। याद रखने की बात है कि इस तरीक़ में दो चीजें तालिब के लिए राहज़न और कातिल ज़हर हैं। एक: तावील अपनी गलती की और दूसरी: अपने मुअल्लिम (पीर,शेख,हज़रत) …
और पढ़ो »अमल और मेहनत के बगैर कोई चारा नहीं है
शेख-उल-हदीस हजरत मौलाना मुहम्मद ज़करिया रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इर्शाद फरमाया: मेरा प्यारो! कुछ कर लो। مَنْ طَلَبَ الْعُلى سَهِرَ الَّیَالِيَ जो शख़्स कुछ बनना चाहे, तो उस को रातों में जागना पड़ता है। फरमाया: एक शख्स थे, जो कुछ रोज़ हजरत रायपुरी रहिमहुल्लाह की खिदमत में रहे, ज़िक्र-ओ-अज़कार में …
और पढ़ो »मेहमान का इकराम
एक वक्त ऐसा हुआ कि शायद बारिश वगैरह की वजह से मौलाना के यहाँ गोश्त नहीं आ सका और उस दिन मेहमानों में मेरे एक मोह़तरम बुजुर्ग (जो हज़रत मौलाना के खास अज़ीज़ भी हैं) वो भी थे, गोश्त से रग्बत हज़रत मौलाना को मालूम थी, यह आजिज़ भी हाज़िर …
और पढ़ो »देखने की चिज़ दिल है
हज़रत मौलाना अशरफ़ ‘अली थानवी रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: लोग आ’माल को देखते हैं; मगर देखने की चिज़ है दिल, कि उसके दिल में अल्लाह और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की मोहब्बत और ‘अज़मत (इज़्ज़त,बड़ाई) किस क़दर है। देहाती हैं,गंवार लोग हैं; मगर उनके दिल में अल्लाह …
और पढ़ो »मौत के लिए हर एक को तैयारी करना है
शेखु-ल-ह़दीस हज़रत मौलाना मुह़म्मद ज़करिया रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: मैं एक बात बहुत सोचता हूं कि मौत से हर एक को साबिका पड़ता है, फिर क्यूं मौत को याद नहीं रखते? आज असर के बाद हमारे एक पड़ोसी का इन्तिका़ल हो गया है, अल्लाह त’आला मगफिरत फ़रमाएं! उन्होंने …
और पढ़ो »ज़िकर करने और सही दीनी तालीम हासिल करने की अहमियत
हज़रत मौलाना मुह़म्मद इल्यास साहब रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: मैं शुरू में इस तरह जि़कर करने की तालीम देता हूं: हर नमाज़ के बाद “तस्बीहे़ फातिमा रदि अल्लाहु ‘अन्हा” और तीसरा कलिमा “سبحان الله والحمد لله ولا إلٰه إلا الله والله أكبر ولا حول ولا قوة إلا بالله” और …
और पढ़ो »अदब का दारोमदार ‘उर्फ़ पर है
हज़रत मौलाना अशरफ़ ‘अली थानवी रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: अदब का दारोमदार सामान्य चलन पर है, ये देखा जाएगा कि ‘उफ़ में यह अदब के खिलाफ समझा जाता है या नहीं। इसी सिलसिले में याद आया कि एक मर्तबा एक खादिम को तंबीह फ़रमाई, जिन्होंने एक ही हाथ …
और पढ़ो »दीनी इदारों की तौहीन करने से परहेज़ करें
शेखुल-हदीस हजरत मौलाना मुह़म्मद ज़करिया रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: मेरे प्यारो! एक बहुत ही ज़रूरी और अहम बात कहना चाहता रहा; मगर अब तक न केह सका. तुम उलमा ए किराम हो, मुदर्रिस हो, बहुत से मदरसों के नाज़िम भी होंगे, ये मदारिस तुम्हारी बरकत से चल रहे …
और पढ़ो »दीन के लिए अपना जान-ओ-माल क़ुर्बान करना
हज़रत मौलाना मुह़म्मद इल्यास साहब रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: दीन में जान की भी कुर्बानी है और माल की भी। तो तब्लीग़ में जान की कुर्बानी यह है कि अल्लाह के वास्ते अपने वतन को छोड़े और अल्लाह के कलिमे (ला-इलाहा इल्लल-लाह मुहम्मदुर रसुलुल्लाह) को फैलाए, दीन की …
और पढ़ो »दीन-ओ-ईमान की हिफाजत का तरीका
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: हातिम असम फ़रमाते हैं कि जब तक कुछ हिस्सा क़ुरान शरीफ़ का और कुछ हिस्सा अपने सिलसिले के मुर्शीद-ओ-बुजुर्ग के मल्फ़ूज़ात-ओ-हिकायत का न पढ़ा जाए, तब तक ईमान की सलामती नज़र नहीं आती। (मुर्शीद=शेख, हिदायत वाला सीधा रास्ता बताने …
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