(४) औरत के लिए जनाज़े के साथ क़बरस्तान जाना और तदफ़ीन में शिरकत करना ना जाईज़ है...
और पढ़ो »जनाज़े को क़ब्रस्तान तक ले जाने से संबंधित मसाईल
(१) अगर मय्यित शिशु (दुध पिता बच्चा) हो तथा उस से बड़ा हो, तो उस को क़बरस्तान ले जाने में नअश(मृत देह) (चारपाई) पर उठाया नही जाएगा, बलकि उस को हाथ पर उठा कर ले जाया जाएगा...
और पढ़ो »मुहब्बत का बग़ीचा (चोथा प्रकरण)
रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के मुबारक दौर में जब लोग इस्लाम में दाख़िल होने लगे और भिन्न भिन्न विस्तारों में इस्लाम की इशाअत (फ़ैलने) की ख़बर पहोंचने लगी, तो बनु तमीम के सरदार अकषम बिन सैफ़ी (रह.) के दिल में इस्लाम के बारे में जानने का शौक़ पैदा हुवा...
और पढ़ो »जनाज़ा उठाने का तरीक़ा
(२) जनाज़ा को तेज़ी से ले कर चलना मसनून है, लेकिन दोड़ना नहीं चाहिए और न ही इतना ज़्यादह तेज़ चलना चाहिए के मय्यित का जिस्म एक तरफ़ से दूसरी तरफ़ हिलने लगे...
और पढ़ो »मुहब्बत का बग़ीचा (तीसरा प्रकरण)
नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने अपनी वफ़ात से पेहले हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) को ख़ुश ख़बरी दी थी के “तुम जन्नत की सारी औरतों की मलिका (रानी) बनोगी”...
और पढ़ो »जनाज़े की नमाज़ में ताख़ीर (देरी)
बड़ी जमाअत की उम्मीद में जनाज़े की नमाज़ में देर करना मकरूह है. इसी तरह अगर किसी का जुम्आ के दिन इन्तिक़ाल हो जाए, तो यह उम्मीद कर के जुम्आ की नमाज़ के बाद ज़्यादह लोग जनाज़े की नमाज़ में शिर्कत करेंगे, जनाज़े की नमाज़ में देर करना मकरूह है...
और पढ़ो »मुहब्बत का बग़ीचा (दूसरा प्रकरण)
यक़ीनन करूणता व मुहब्बत का यह निराला जौहर हमारे आक़ा सरकारे दो आलम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के तमाम अख़लाक़े आलिया(उच्च संस्कार) और अवसाफ़े हमीदा(नीराली सभ्यता) के अंदर थे और आप के यही मुबारक किरदार(व्यव्हार) को मखलूक़े इलाही दीन-रात मुशाहदा करते(देखते) थे. जो बहोस से लोगों के इस्लाम लाने का कारण बना.۔۔
और पढ़ो »जनाज़े की नमाज़ की इमामत का सब से ज़्यादह हक़दार कौन है?
इस्लामी मुल्क में जनाज़े की नमाज़ की इमामत के लिए सब से मुक़द्दम मुस्लिम हाकिम है. शरीअत ने मुस्लिम हाकिम को जनाज़े की नमाज़ पढ़ाने का हक़ दिया है.
और पढ़ो »इमाम का चार तकबीरों से अधिक तकबीर केहना
अगर इमाम जनाज़े की नमाज़ में चार से अधिक तकबीर कहें, तो मुक़तदीयों को अधिक तकबीर में उन की इक़्तिदा(अनूसरता) नहीं करनी चाहिए, बलकि उन को ख़ामोश रेहना चाहिए और जब इमाम फेर कर नमाज़ संपूर्ण करे तो वह भी सलाम फेर कर नमाज़ संपूर्ण करेंगे. अलबत्ता अगर मुक़तदीयों को …
और पढ़ो »मुहब्बत का बग़ीचा (पेहला प्रकरण)
लिहाज़ा हमारे लिए ज़रूरी है के हम अपने निर्माता और मालिक अल्लाह तआला को पेहचानें, उन की प्रकृति तथा महानता और जलाल तथा जमाल पर विचार करें के अल्लाह तआला अपनी मख़लूक़ से किस क़दर मुहब्बत फ़रमाते हैं के वह हमें गुनाहों और नाफ़रमानियों के बावुजूद दिन और रात बेशुमार नेमतें अता फ़रमा रहे हैं और हमारे ऊपर बेशुमार एहसानात कर रहे हैं...
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