इस्लाम क़बूल करने का तरीक़ा

जो शख़्स इस्लाम क़बूल करना चाहे, तो उस के लिए ज़रूरी है के वह गवाही दे के अल्लाह तआला तमाम मख़लूक के हक़ीक़ी माबूद हैं और वह अपनी ज़ात व सिफ़ात में तन्हा हैं और उस का कोई हिस्सेदार नहीं है और मुहमंद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अल्लाह तआला के बंदे और आख़री पैग़म्बर हैं, इसी तरह वह इस्लाम के तमाम अक़ाईद(मान्यता) का समर्थन करे और दीन की उन तमाम चीज़ों को क़बूल करे जो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ले कर आए. उस के अलावह यह भी ज़रूरी है के कुफ़्र और शिर्क के तमाम शआईर(रस्मो-रिवाज), अक़ाईद, कामों और चिज़ों से तौबा करे और इस्लाम के अलावह तमाम धर्मों का इन्कार करे और उन को बातिल(अयोग्य) समझे, विशेषकर जिस मज़हब(धर्म) पर वह था उस से तौबा व अस्तग़फ़ार करे.

बेहतर है के इस्लाम लाने से पेहले ग़ुसल कर के अच्छी तरह पाकी हासिल करे. फिर सच्चे दिल से कलिमए शहादत पढ़े.

कलिमए शहादत यह हैः

أَشْهَدُ أَنْ لَّا إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَ أَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُوْلُهُ

में गवाही देता हुं के अल्लाह तआला के सिवा कोई इबादत के लाईक़(योग्य) नहीं और मुहमंद(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अल्लाह तआला के बंदे और पैग़म्बर हैं.

इस्लाम के बुनयादी(प्रारंभिक) अक़ाईद(मान्यता) निम्नलिखित दिए गए हैः

(१) अल्लाह तआला एक है और उन का कोई हिस्सेदार नहीं, वह तमाम चिजों के जानने वाले हैं और मख़लूक़ की चिजों में से कोई चिज़ उन पर छूपी हुई नहीं है.

(२) अल्लाह तआला अपनी ज़ात और सिफ़ात में यकता और अकेले हैं और वह मख़लूक़ की सिफ़ात से पाक हैं.

(३) हज़रत मुहमंद(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अल्लाह तआला के सच्चे बंदे और आख़री पैग़म्बर हैं और आप क़यामत तक के तमाम इन्सान और जिन्नात की हिदायत(मार्गदर्शन) के लिए मबऊष(पैदा) हुए हैं.

(४) आसमानी किताबों में से आख़री किताब क़ुरआन शरीफ़ है जो हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर नाज़िल हुई, अल्लाह तआला ने क़ुरआन शरीफ़ की हिफ़ाज़त की ज़मानत और ज़िम्मेदारी ली है, लिहाज़ा क़यामत तक इस किताब में कोई तबदीली और तहरीफ़ नहीं होगी. यह बात इस्लाम के मज़हब(धर्म) की सच्चाई की साफ़ दलील है.

(५) अल्लाह तआला ने जितने अंबिया और रसूलों को दुन्या में भेजा वह सब अल्लाह तआला के नैक और सच्चे पैग़म्बर हैं और जो किताबें और सहीफ़े अल्लाह तआला ने उन को अपनी क़ौम की हिदायत के लिए अर्पण फ़रमाए वह किताबें और सहीफ़े बरहक़ हैं, शर्त यह है के वह उसी सूरत पर बाक़ी हों जिस सूरत पर नाज़िल किए गए थे.

(६) जन्नत और जहन्नम को अल्लाह तआला ने पैदा फ़रमाया और दोनों बरहक़ हैं जो लोग इस्लाम क़बूल करेंगे अल्लाह तआला उन को जन्नत नसीब फ़रमाऐंगे और जो लोग कुफ़्र और शिर्क की हालत में मरेंगे अल्लाह तआला उन को जहन्नम में दाख़िल करेंगे.

(७) दुनिया में जो कुछ अच्छा या बुरा होता है सारी बातें तक़दीर में लिख्खी हुई हैं.

(८) तमाम फ़रिश्ते अल्लाह तआला के फ़रमां बरदार(आज्ञाकारी) बंदे हैं.

(९) क़यामत के दिन अल्लाह तआला तमाम मख़लूक को ज़िंदा कर के मैदाने हश्र में हिसाब के लिए जमा करेंगे दुनिया में जिन लोगों ने ईमान के साथ अच्छे काम किए अल्लाह तआला उन को अच्छा बदला अता फ़रमाऐंगे और जिन मुसलमानों ने बुरे काम किए यातो अल्लाह तआला उन को मुआफ़ करेंगे या उन को बुराई की सज़ा देंगे.

(१०) जो लोग इस्लाम क़बूल न करे और कुफ़्र की हालत में मरे वह हंमेशा के लिए जहन्नम में रहेंगे अगर दुनिया में उन्होंने कोई अच्छा काम किया या अल्लाह तआला की मख़लूक़ पर एहसान किया या ख़ैरात(दान) की तो अल्लाह तआला उन को उन के अच्छे काम का बदला दुनिया में ही दे देंगे और ईमान न होने की वजह से आख़िरत में उन को किसी नेकी का षवाब नहीं मिलेगा.

(११) इस्लाम के अलावाह तमाम मज़ाहिब(धर्मों) बातिल हैं और अल्लाह तआला के यहां सिर्फ मज़हबे इस्लाम बरहक़ और मक़बूल है.

इस के अलावाह नव मुस्लिम के लिए ज़रूरी है के वह किसी आलिम या दीन के जाननेवाले के पास जाए और उन से दीन के अहकाम और मसाईल सीखे. ऊदाहरण के तौर पर इस्तिन्जा, वुज़ू, ग़ुसल, नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, मां-बाप और बीवी बच्चों के हुक़ूक़ और जिस हुनर, पेशा या तिजारत की लाईन में हो उस लाईन से संबंधित मसाईल भी उन से सीखे.

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