(ए मोहम्मद सल्लल्लाहु अलयहि वसललम) जब अल्लाह की मदद और फतह (फ़तहे मक्का) आ जाए (१) और आप लोगों को देख लें के वज जोक़ दर जोक़ अल्लाह के दीन में दाख़िल हो रहे हैं (२) तो आप अपने परवरदिगार की तस्बीह तथा तहमीद किजीए और उस से मग़फ़िरत तलब किजीए. बेशक वह बहोत माफ़ करने वाला है (३)...
और पढ़ो »सूरतुल काफ़िरून की तफ़सीर
आप (ए मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)) केह दीजिए के ए काफ़िरो (१) न में तुम्हारे माबूदों की परसतिश करता हुं (२) और न तुम मेरे माबूद की परसतिश करते हो (३)...
और पढ़ो »सूरतुल कवषर की तफ़सीर
बेशक हम ने आप को ख़ैरे कषीर अता फ़रमाई है (१) सो आप अपने परवरदिगार की नमाज़ पढ़िए और क़ुर्बानी किजीए (२) बिलयक़ीन आप का दुश्मन ही बेनामो निशान है (३)...
और पढ़ो »सुरए माऊन
क्या आप ने उस शख़्स को देखा है जो रोज़े जज़ा को झुटलाता है (१) तो वह वह शख़्स है जो यतीम को घक्के देता है (२) और मोहताज को खाना देने की तरग़ीब नहीं देता (३) फिर बड़ी ख़राबी है उन नमाज़ियों के लिए (४)...
और पढ़ो »सुरए क़ुरैश की तफ़सीर
क़ुरैश की इज़्ज़त तथा महानता का ज़ाहिरी सबब यह है के उन के अन्दर कुछ उच्च अख़लाक़ तथा अवसाफ़ थे. जैसे अमानत दारी, शुकर गुज़ारी, लोगों की रिआयत, उन के साथ हुस्ने सुलूक (अच्छा व्यव्हार) और बे बस लाचार लोगों और मज़लूमों की मदद करना वग़ैरह. इस प्रकार के उच्च अख़लाक़ तथा अवसाफ़ क़ुरैश की सरीश्त और फ़ितरत में दाख़िल थे. यही वजह है के अल्लाह तआला ने उन्हें अपने घर काबा शरीफ़ की ख़िदमत का शरफ़ अता फ़रमाया...
और पढ़ो »सुरतुल फ़ील की तफ़सीर
क्या आप को मालूम नहीं के आप के रब ने हाथी वालों के साथ कैसा मामला किया (१) क्या उस ने उन लोगों की सारी तदबीरें बेकार नहीं कर दी थीं (२) और उन पर झुंड के झुंड परिन्दे भेज दिए थे...
और पढ़ो »सूरतुल हुमज़ह की तफ़सीर
आप को कुछ मालूम है के वह तोड़ने वाली आग कैसी है? (५) वह अल्लाह तआला की आग है जो सुलगाई गई है (६) जो दिलों तक पहोंच जाएगी (७) वह उन पर बंद कर दी जाएगी (८) बड़े लंबे लंबे स्थंभो में (९)...
और पढ़ो »सुरतुल अस्र की तफ़सीर
क़सम है ज़माने की (१) बेशक इन्सान बड़े घाटे में है (२) सिवाए उन लोगों के जो और इमान लाए और अच्छे काम किए और एक दूसरे को हक़ बात की नसीहत करते रहे और एक दूसरे को सबर की नसीहत करते रहे (३)...
और पढ़ो »सुरए तकाषुर की तफ़सीर
بِسۡمِ اللّٰہِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِیۡمِ اَلۡہٰکُمُ التَّکَاثُرُ ۙ﴿۱﴾ حَتّٰی زُرۡتُمُ الۡمَقَابِرَ ؕ﴿۲﴾ کَلَّا سَوۡفَ تَعۡلَمُوۡنَ ۙ﴿۳﴾ ثُمَّ کَلَّا سَوۡفَ تَعۡلَمُوۡنَ ؕ﴿۴﴾ کَلَّا لَوۡ تَعۡلَمُوۡنَ عِلۡمَ الۡیَقِیۡنِ ؕ﴿۵﴾ لَتَرَوُنَّ الۡجَحِیۡمَ ۙ﴿۶﴾ ثُمَّ لَتَرَوُنَّہَا عَیۡنَ الۡیَقِیۡنِ ۙ﴿۷﴾ ثُمَّ لَتُسۡـَٔلُنَّ یَوۡمَئِذٍ عَنِ النَّعِیۡمِ ﴿۸﴾ एक दूसरे से ज़्यादा (दुनयवी साज़ो सामान) हासिल करने …
और पढ़ो »सूरतुल क़ारिअह की तफ़सीर
खड़खड़ाने वाली चीज़ (१) क्या है वह खड़खड़ाने वाली चीज़ ? (२) और आप को क्या मालूम के वह खड़खड़ाने वाली चीज़ क्या है ?...
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