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मुहब्बत का बग़ीचा

आज भी अगर मुसलमान अपने अख़लाक़ तथा आदतों और अपनी ज़िंदगी को रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के शिक्षणों तथा हिदायात(बताई हुई बातों) पर अमल कर लें, तो आंखों ने जो मन्ज़र सहाबए किराम के ज़माने में देखा था, इस दौर में भी वो मन्ज़र नज़र आएगा...

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मस्ज़िद की सुन्नतें और आदाब- (भाग-२)

हज़रत अबू क़तादा (रज़ि.) से रिवायत है के रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जब तुम में से कोई मस्जिद में दाख़िल हो, तो उसे चाहिए के बैठने से पेहले दो रकात नमाज़ अदा करे.”...

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सवारी में बैठ कर जनाज़े की नमाज़ अदा करने का हुक्म

एक वक़्त में अनेक मुरदों की जनाज़े की नमाज़ अदा करने का हुक्म

अगर एक वक़्त में बहोत सारे जनाज़े आ जाऐं, तो हर मय्यित की अलग अलग जनाज़े की नमाज़ अदा करना बेहतर है, लेकिन तमाम मुरदों की एक साथ एक जनाज़े की नमाज़ अदा करना भी जाईज़ है...

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दुरूद शरीफ़ रिज़्क़ में बरकत का ज़रीआ

हज़रत सहल बिन सअद (रज़ि) फ़रमाते हैं के एक मर्तबा एक सहाबी नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुवे और आप से ग़रीबी तथा धन के अभाव की शिकायत. तो नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने उन से फ़रमाया के...

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वालिदैन के इन्तिक़ाल के बाद उनकी आझाकारिता का तरीक़ा

“जिस किसी ने अपने माता-पिता की ज़िंदगी में उन की सेवा तथा आझा का पालन न किया हो बाद में उन के इन्तिक़ाल के बाद उस की तलाफ़ी (प्रायश्र्वित) की शकल भी हदीष से षाबित है. वह यह के...

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