सजदा (१) तकबीर कहें और हाथ उठाए बग़ैर सजदे मे जायें. (२) सजदे में जाते हुए पेहले ज़मीन पर घुटनों को रखें, फिर हथेलियों को ज़मीन पर रखें, फिर नाक को और आख़िर में पेशानी को रखें. (३) सजदे की हालत में ऊंगलियों को एक दूसरे से मिलावे और क़िब्ला …
और पढ़ो »अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर की ज़िम्मे दारी – प्रकरण-७
लोगों की इस्लाह के वक्त रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अंदाज हज़रत हसन और हज़रत हुसैन रदि अल्…
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम की मुबारक ज़बान से हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु की तारीफ
हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हू एक दफा रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम के पास आए। उन्…
हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु के लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खुसूसी दुआ
गज़व-ए-उह़ुद में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु के लिए ख…
अल्लाह त’आला की बारगाह में हज़रत स’अ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु की दुआओं की क़ुबूलियत
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत स’अ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु के लिए दुआ फ़रमाई:…
मौत के लिए हर एक को तैयारी करना है
शेखु-ल-ह़दीस हज़रत मौलाना मुह़म्मद ज़करिया रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया: मैं एक बात बहुत स…
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नुसरत का मदार
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः “फ़तहो नुसरत का मदार क़िल्लत(कमी) और कषरत(ज़्यादती) पर नहीं वह चीज़ ही और है. मुसलमानों को सिर्फ़ उसी एक चीज़ का ख़्याल रखना चाहिए यअनी ख़ुदा तआला की रिज़ा फिर काम में लग जाना चाहिए, अगर कामयाब हों शुकर …
और पढ़ो »नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – १२
रूकूअ और क़ौमा (१) सुरए फ़ातिहा और सूरत पढ़ने के बाद तकबीर कहें और हाथ उठाए बग़ैर रूकुअ में जायें. नोटः जब मुसल्ली नमाज़ की एक हयअत (हालत) से दूसरी हयअत (हालत) की तरफ़ जावे, तो वह तकबीर पढ़ेगी. इस तकबीर को तकबीरे इन्तेक़ालिया केहते हैं. तकबीरे इन्तेक़ालिया का हुकम …
और पढ़ो »शाबान की पंदरहवीं शब की फ़ज़ीलत
सवाल – में ने एक अरब शैख़ से सुना के शबे बराअत की फ़ज़ीलत के सिलसिले में जितनी भी अहादीष वारिद हुई वह सब ज़ईफ़ है, लेकिन उन में से कोई हदीष सहीह नहीं है. लिहाज़ा इस शब और उस के अगले दिन को महत्तवता देने की ज़रूरत नहीं. क्या …
और पढ़ो »मोहब्बत का बग़ीचा (चोबीसवां प्रकरण)
जिस तरीक़े से अंबिया (अलै.) और सहाबए किराम (रज़ि.) ने मख़लूक़ की ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश की, अल्लाह तआला हमें मख़लूक़ की ख़ैर ख़्वाही की फ़िकर अता फ़रमाई और उन की ज़रूरतों को पूरा करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाई. आमीन....
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