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अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१९)

इक़ामत के कलिमात अज़ान के कलिमात की तरह हैं. इन दोनों के कलिमात में मात्र इतना फ़र्क़ है के इक़ामत में حَيَّ عَلى الْفَلَاح (हय्य अलल फ़लाह) के बाद قَدْ قَامَتِ الصَّلاَة قَدْ قَامَتِ الصَّلاَة...

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ग़ुसल और जनाज़े की नमाज के बग़ैर दफ़न किए गए मय्यित की जनाज़े की नमाज़

अगर किसी मय्यित को ग़ुसल और जनाज़े की नमाज़ के बग़ैर दफ़न कर दिया गया हो, तो उस की जनाज़े की नमाज़ उस की क़बर पर पढ़ी जाएगी, इस शर्त के साथ के उस की लाश न फटी हो...

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इमान की हिफ़ाज़त बुज़ुर्गोने दीन की संगात पर निर्भर है

हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः

"यह ज़माना बहोत ज़्यादह फ़ितनों से भरा हुवा है. इस में तो इमान ही के लाले पड़े हैं. इसी वजह से में ने बुज़ुर्गाने दीन की सोहबत(संगात) को फ़र्ज़े ऐन(बहुत ज़रूरी) क़रार दिया है(घोषित किया है). में तो फ़तवा देता हुं के...

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अज़ान और इक़ामत की सुन्नतें और आदाब-(भाग-१७)

اللّٰهُمَّ إِنَّ هٰذَا إِقْبَالُ لَيْلِكَ وَإِدْبَارُ نَهَارِكَ وَأَصْوَاتُ دُعَاتِكَ فَاغْفِرْ لِيْ

ए अल्लाह ! बेशक यह रात की शरूआत और दीन की इन्तेहा है और यह आप के बंदों(मुअज़्ज़िन) की आवाज़े हैं जो आप की तरफ़ बुला रहे हैं. आप मेरी मग़फ़िरत फ़रमाइए...

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