हर अच्छे काम का अंत इस्तिग़फ़ार से करना

हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास साहब(रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः

“जितना भी अच्छे से अच्छा काम करने की अल्लाह तआला तौफ़ीक़ दे हंमेशा उस का अंत इस्तिग़फ़ार पर ही किया जाए. उद्देश्य हमारे हर काम का अंतिम हिस्सा इस्तिग़फ़ार हो. यअनी यह समझ कर के मुझ से यक़ीनन उस की अदायगी में कोताहियां हुई हैं. इन कोताहियों के लिए अल्लाह तआला से माफ़ी मांगी जाए. रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) नमाज़ के ख़तम पर भी अल्लाह तआला से इस्तिग़फ़ार किया करते थे.

लिहाज़ा तबलीग़ का काम भी हंमेशा इस्तिग़फ़ार ही पर ख़तम किया जाए. बंदे से किसी तरह भी अल्लाह तआला के काम का हक़ अदा नहीं हो सकता. तथा एक काम में व्यस्तता बहोत से दूसरे कामों के न हो सकने का भी कारण बन जाती है. तो इस प्रकार की चीज़ों की क्षतीपूर्ती (तलाफ़ी) के लिए भी हर अच्छे काम के ख़तम पर इस्तिग़फ़ार करना चाहिए.” (मलफ़ूज़ात हज़रत मौलाना मुहमंद इल्यास(रह.), पेज नं-३१)

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