नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – ३

रूकुअ और क़ौमा

(१) सुरए फ़ातिहा और सूरत पढ़ने के बाद तकबीर कहें और हाथ उठाए बग़ैर रूकुअ में जायें. [१]

नोटःजब मुसल्ली नमाज़ की एक हयअत (हालत) से दूसरी हयअत (हालत) की तरफ़ जावे, तो वह तकबीर पढ़ेगा. इस तकबीर को तकबीरे इन्तेक़ालिया केहते हैं. तकबीरे इन्तेक़ालिया का हुकम यह है के मुसल्ली उस वक़्त तकबीर पढ़ना शुरूअ करें जब वह नीचे जाने लगे और उस वक़्त ख़तम करे जब वह दूसरी हयअत (हालत) को पहोंचे. मषलन जुं ही आप क़याम से रूकुअ के लिये झुकना शुरूअ करें, तो उस वक़्त आप तकबीर पढ़ना शुरूअ कर दें और जब आप रूकुअ को पहोंचे तो फिर आप तकबीर ख़तम कर दें. [२]

(२) रूकुअ के दौरान आप अपनी पीठ को सीधी रखे (मुड़ी हुई न रखे). और पिंडलियो को भी (यअनी घुटनों से नीचे का हिस्सा) सिधी रखे इसी तरह कहोनियां भी सीधी रखे. [३]

(३) रूकुअ में अपना सर सीधा रखें. सीधा रखने का मतलब यह है के आप सर को न उठायें और न झुकायें, बलके सर को पीठ के बराबर रखें. [४]

(४) घुटनों को ऊंगलियों से मज़बूती से पकड़ें इस तरह से के ऊंगलियां घुटनों पर फैली हुई हो, और मिली हुई न हो. [५]

(५) रूकुअ के दौरान निगाह पैरों पर रखें. [६]

(६) बाज़ुवों को बदन से अलग रखें. [७]

(७) तीन मर्तबा या पांच या सात मर्तबा (या किसी एकी अदद में) रूकुअ में निम्नलिखित तस्बीह पढेः [८]

سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيْم

मेरा अज़ीम रब पाक है.

(८) रूकुअ से उठते हुए तस्मीअ पढ़े. [९]

तस्मीअ के अलफ़ाज़ यह हैंः

سَمِعَ اللهُ لِمَنْ حَمِدَهْ

अल्लाह तआलाने तारीफ़ करने वाले की तारीफ़ सुन ली.

(९) उठने के बाद जब खड़े हों तो तहमीद पढ़ें.

तहमीद के अलफ़ाज़ यह हैंः

اَللّٰهُمَّ رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْد

ए अल्लाह ! ए हमारे रब ! सारी तारीफ़ें आप ही के लिये हैं.

(१०) रूकुअ से उठने के बाद बिलकुल सीधे खड़े हो जायें. अपने हाथों को न बांधें, बलके दोनों हाथों को अपने दोनों जानिब रखें.

नमाज़ की इस हयअत को क़ौमा कहा जाता है. क़ौमा में सीधे खड़े रहे तअदीले अरकान के साथ (के पूरा जिसम इत्मीनान से हो). फिर सजदे में जायें. [१०]


 

[१] (ثم) كما فرغ (يكبر) مع الإنحطاط (للركوع) للتمكن

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله (قوله مع الإنحطاط) أفاد أن السنة كون إبتداء التكبير عن الخرور وانتهاءه عند استواء الظهر (رد المحتار ۱/٤۹۳)

[२] وينصب ساقيه (ويبسط ظهره) ويسوي ظهره بعجزه (غير رافع ولا منكس رأسه ويسبح فيه)

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله قوله (وينصب ساقيه) فجعلهما شبه القوس كما يفعله كثير من العوام مكروه بحر (رد المحتار ۱/٤۹٤)

حدثنى عباس بن سهل قال اجتمع أبو حميد وأبو أسيد وسهل بن سعد ومحمد بن مسلمة فذكروا صلاة رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال أبو حميد أنا أعلمكم بصلاة رسول الله صلى الله عليه وسلم فذكر بعض هذا قال ثم ركع فوضع يديه على ركبتيه كأنه قابض عليهما ووتر يديه فتجافى عن جنبيه قال ثم سجد فأمكن أنفه وجبهته ونحى يديه عن جنبيه ووضع كفيه حذو منكبيه ثم رفع رأسه حتى رجع كل عظم في موضعه حتى فرغ ثم جلس فافترش رجله اليسرى وأقبل بصدر اليمنى على قبلته ووضع كفه اليمنى على ركبته اليمنى وكفه اليسرى على ركبته اليسرى وأشار بأصبعه (سنن أبي داود، الرقم: ۷۳٤)

قال العلامة السندي: (قوله وتر يديه) هو بتشديد التاء في المجمع أي جعلهما كالوتر شبه به الراكع إذا مدهما قابضا على ركبتيه بالقوس إذا وترت انتهى (حاشية سنن أبي داود ۱/۱٠۷)

[३] وينصب ساقيه (ويبسط ظهره) ويسوي ظهره بعجزه (غير رافع ولا منكس رأسه ويسبح فيه)

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله قوله (وينصب ساقيه) فجعلهما شبه القوس كما يفعله كثير من العوام مكروه بحر (رد المحتار ۱/٤۹٤)

حدثنى عباس بن سهل قال اجتمع أبو حميد وأبو أسيد وسهل بن سعد ومحمد بن مسلمة فذكروا صلاة رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال أبو حميد أنا أعلمكم بصلاة رسول الله صلى الله عليه وسلم فذكر بعض هذا قال ثم ركع فوضع يديه على ركبتيه كأنه قابض عليهما ووتر يديه فتجافى عن جنبيه قال ثم سجد فأمكن أنفه وجبهته ونحى يديه عن جنبيه ووضع كفيه حذو منكبيه ثم رفع رأسه حتى رجع كل عظم في موضعه حتى فرغ ثم جلس فافترش رجله اليسرى وأقبل بصدر اليمنى على قبلته ووضع كفه اليمنى على ركبته اليمنى وكفه اليسرى على ركبته اليسرى وأشار بأصبعه (سنن أبي داود، الرقم: ۷۳٤)

قال العلامة السندي: (قوله وتر يديه) هو بتشديد التاء في المجمع أي جعلهما كالوتر شبه به الراكع إذا مدهما قابضا على ركبتيه بالقوس إذا وترت انتهى (حاشية سنن أبي داود ۱/۱٠۷)

[४] (و) يسن (تفريج أصابعه) لقوله صلى الله عليه وسلم لأنس رضي الله عنه إذا ركعت فضع كفيك على ركبتيك وفرج بين أصابعك وارفع يديك عن جنبيك ولا يطلب تفريج الأصابع إلا هنا ليتمكن من بسط الظهر

قال العلامة الطحاوي رحمه الله قوله (ولا يطلب تفريج الأصابع إلا هنا) أي التفريج التام كما أنه لا يطلب الضم التام إلا في السجود فيما عدا هذين يبقيها على خلقتها قوله (ليتمكن من بسط الظهر) الأولى أن يقول ليتمكن من الأخذ فإن التفريج لا دخل له في البسط بالتجربة (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ ۲٦٦)

[५] (و) يسن (تفريج أصابعه) لقوله صلى الله عليه وسلم لأنس رضي الله عنه إذا ركعت فضع كفيك على ركبتيك وفرج بين أصابعك وارفع يديك عن جنبيك ولا يطلب تفريج الأصابع إلا هنا ليتمكن من بسط الظهر

قال العلامة الطحاوي رحمه الله قوله (ولا يطلب تفريج الأصابع إلا هنا) أي التفريج التام كما أنه لا يطلب الضم التام إلا في السجود فيما عدا هذين يبقيها على خلقتها قوله (ليتمكن من بسط الظهر) الأولى أن يقول ليتمكن من الأخذ فإن التفريج لا دخل له في البسط بالتجربة (حاشية الطحطاوي على مراقي الفلاح صـ ۲٦٦)

[६] (ولها آداب) … (نظره إلى موضع سجوده حال قيامه وإلى ظهر قدميه حال ركوعه …) (الدر المختار ۱/٤۷۷)

[७] قال وينبغى أن يزاد مجافيا عضديه مستقبلا أصابعه فإنهما سنة كما في الزاهدي (رد المحتار ۱/٤۹٤)

[८] ويقول في ركوعه سبحان ربي العظيم ثلاثا وذلك أدناه (الفتاوى الهندية ۱/۷٤)

وصرحوا بأنه يكره أن ينقص عن الثلاث وأن الزيادة مستحبة بعد أن يختم على وتر خمس أو سبع ما لم يكن إماما فلا يطول (رد المحتار ۱/٤۹٤)

[९] (ثم يرفع رأسه من ركوعه مسمعا … ويكتفي به الإمام) وقالا يضم التحميد سرا (و) يكتفي (بالتحميد المؤتم) وأفضله اللهم ربنا ولك الحمد ثم حذف الواو ثم حذف اللهم فقط (ويجمع بينهما لو منفردا) على المعتمد يسمع رافعا ويحمد مستويا (الدر المختار ۱/٤۹٦)

فإذا قال الإمام مقارنا للانتقال سمع الله لمن حمده يقول المقتدي مقارنا له ربنا لك الحمد (بدائع الصنائع ۲/۵٦)

[१०] (ويقوم مستويا)

قال العلامة ابن عابدين رحمه الله (مستويا) هو للتأكيد فإن مطلق القيام إنما يكون باستواء الشقين وإنما أكد لغفلة الأكثرين عنه فليس بمستدرك كما ظن قهستاني أو للتأسيس والمراد منه التعديل كما أفاده في العناية (رد المحتار ۱/٤۹۷)

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