इत्तेबाए सुन्नत का एहतेमाम – ६

हजरत मुफ़्ती महमूद हसन गंगोही रहिमहुल्लाह

हज़रत मुफ़्ती महमूद हसन गंगोही रहिमहुल्लाह हमारे बुजुर्गाने किराम और बड़े लोगों में से थे, जिनका ज़माना हमसे ज़्यादा दूर नहीं है। उनकी पैदाइश 1325 हिजरी में हुई और वह हज़रत शेखु-ल-ह़दीस मौलाना मुह़म्मद ज़कारिया कांधलवी रहिमहुल्लाह के अजल्ले-खुलफा में से थे। वो कई सालों तक दारुल-‘उलूम देवबंद के बड़े मुफ़्ती शुमार किए जाते थे। उनका इन्तिका़ल 1417 हिजरी (1996 ‘ईस्वी) में हुआ था।

हज़रत मुफ्ती महमूद हसन गंगोही रहिमहुल्लाह को अल्लाह त’आला ने बहुत से नुमायां कमालात और खूबियों से नवाजा़ था। उनकी एक नुमायां और का़बिले नमूना खूबि यह थी कि वो नबी ए करीम सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम और आप सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम की सुन्नतों के ‘आशिक़ थे; चुनांचे, अपनी जिंदगी के तमाम काम और मामलों में वे आप सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम की मुबारक सुन्नतों की इत्तिबा’ करने का खूब एहतेमाम फ़रमाते थे।

नीचे कुछ वाक़िआत नक़ल किये जा रहे हैं, जिन्हें पढ़कर हम इस बात का अच्छी तरह से अंदाज़ा कर सकते हैं कि हजरत मुफ्ती साहब रहिमहुल्लाह सुन्नतों पर पाबंदी का कितना ज़्यादा एहतेमाम फ़रमाते थे:

दाहिने हाथ से पानी पीना

एक बार हज़रत मुफ्ती साहब रहिमहुल्लाह अपने शागिर्दों के साथ ख़ाना खा रहे थे। खाने के दौरान एक शागिर्द ने अपने बाएं हाथ से पानी का प्याला लिया और दाहिना हाथ प्याले के नीचे रखकर पानी पी लिया।

जब हजरत मुफ़्ती साहेब रहिमहुल्लाह ने उसको इस तरह पानी पीते देखा तो नाराज़गी जाहिर की और फ़रमाया: क्या दाहिना हाथ नहीं था?

उसने जवाब दियाः हज़रत! दाहिने हाथ पर खाना लगा था. अगर उस हाथ से प्याला पकड़ता तो प्याला ख़राब हो जाता।

यह जवाब सुनकर हज़रत मुफ्ती साहब रहिमहुल्लाह ने नाराज़गी के लहजे से फ़रमाया: क्या प्याला नबी ए करीम सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम की सुन्नत से ज़्यादा क़ीमती है?

अपने बड़े के हुक्मों पर ‘अमल करना

आँख में मोतिया उतर आने की वजह से आंखों की रोशनी जाती रही। हज़रत मुफ़्ती साहब ऑपरेशन न करने पर अड़े हुए थे और लोगों के ज़ोर देने पर इरशाद फ़रमाते कि आँखों के लेने पर अल्लाह त’आला ने जन्नत का वादा फ़रमाया है, मैं उसे क्यों खो दूं? और ऑपरेशन के मामले में कुछ दिन इशारों में नमाज पढ़नी पड़ती है, मैं सजदा नहीं कर सकते, इसको क्यूं बर्दाश्त करूं?

शेखु-ल-ह़दीस हजरत मौलाना ज़कारिया साहब रहिमहुल्लाह ने हूकम फ़रमाया, उस वक्त भी सबसे पहले तो उन्होंने माफी ही मांगी और वही जवाब दिया और अर्ज़ किया: हजरत गंगोही ने ऑपरेशन नहीं कराया और लोगों के इसरार (आग्रह) पर फ़रमाया कि आंखों के लेने पर अल्लाह त’आला ने जन्नत का वादा फ़रमाया है, मैं उसे क्यों खो दूं?

उस पर हज़रत शेख ज़करिया रहिमहुल्लाह ने फ़रमाया: मैं तो अपनी आंखों का काम भी आप की आंखों से लेता हूं।

उसके बाद हज़रत मुफ़्ती साहेब रहिमहुल्लाह ने मोतिया का आपरेशन करवाया और ओपरेशन के बाद आंखों में रोशनी आ जाने पर फ़रमाया: इसकी तो खुशी है ही कि आंखों में रोशनी आ गई; मगर इस से ज़्यादा खुशी इसकी है कि शैख (ज़करिया रहिमहुल्लाह) के हुक्म की ता’मील हो गई।

ह़रम में नमाज़ की अदायगी का एहतेमाम

एक बार हज़रत मुफ़्ती साहब रहिमहुल्लाह हज के लिये तशरीफ़ ले गए। उस समय मौसम बहुत ज़्यादा गर्म था. गर्मी की शिद्दत की वजह से हज़रत मुफ्ती साहब रहिमहुल्लाह का पूरा बदन फ़ूट पड़ा और पूरे बदन पर बड़े-बड़े छालों की शक्ल में दाने निकल आये।

हज़रत मुफ़्ती साहब रहिमहुल्लाह की परेशानी देखकर बाज़ रफिक़ो ने अर्ज़ किया: हज़रत! कुछ नमाज़ें क़याम-गाह ही पर पढ़ लें, ह़रम न जाएँ; मगर इस हालत में भी हज़रत मुफ़्ती साहब रहिमहुल्लाह किसी तरह इस के लिए तैयार नहीं हुए कि वह हरम न जाएँ और क़याम-गाह ही पर कुछ नमाज़ें अदा कर लें और फ़रमाया:

हम अपना वतन छोड़ कर सिर्फ ह़रम की खातिर आये हैं; इसलिए यह कैसे हो सकता है कि यहां रह कर भी क़याम-गाह पर नमाज़ अदा करें और ह़रम की नमाज़ से मह़रूम रहें।

(क़याम-गाह= ठहरनी की जगह)

मज़ीद रक़म के साथ तनख़्वाह की वापसी

दारुल उलूम देवबंद में मुलाज़मत के दौरान हज़रत मुफ़्ती साहब रहिमहुल्लाह हर महीने मदरसे से तनख़्वाह वुसूल फ़रमाते थे; ताकि उन्हें इस बात का पूरे तौर पर एहसास रहे कि वो मदरसे की तरफ से सौंपी गई जिम्मेदारी और समय की पाबंदी के जवाबदेह हैं।

दूसरी ओर, हज़रत मुफ़्ती साहब रहिमहुल्लाह का मा’मूल था कि वो तनख्वाह वुसूल करने के बाद उसमें और पैसे जोड़ देते थे और उसको मदरसा में वापस कर देते थे (मज़ीद रक़म देने की वजह यह थी कि वो यह समझते थे कि वह मदरसा की सहूलतों से फायदा उठाते हैं)

लोगों के चेहरों पर मस्नून दाढ़ी देखकर खुशी जाहिर करना

हज़रत मुफ़्ती साहब रहिमहुल्लाह ने जब किसी शख्स को देखते थे कि उसके चेहरे पर मस्नून दाढ़ी नहीं है, तो वो उसके बारे में फिक्रमंद होते थे और जब उस शख्स ने सुन्नत के मुताबिक दाढ़ी रखना शुरू कर लिया, तो वह बेहद खुश होते थे।

Check Also

क़यामत की निशानियां – क़िस्त ५

दज्जाल के बारे में अहले सुन्नत वल-जमआत का ‘अकीदा दज्जाल की जाहिर होने और उसकी …