लोगों को नसीहत करते वक्त उनको शर्मिंदा करने से बचना

जो शख्स ऐसे लोगों को सलाह देता है जो दीन से दूर हैं और उनके पास दीन की सही समझ नहीं है, तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह उनके साथ नरमी से बात करे। नरमी से बात करने के साथ साथ उसको चाहिए कि वो किसी भी तरीके से उनको नीचा दिखाने वाला काम न करें और ना ही उनको शर्मिंदा करें।

लोगों के साथ नरमी से बात करना और उन्हें शर्मिंदा न करना, नबी ए करीम सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम का मुबारक तरीका और अंबिया-ए-किराम ‘अलैहिमुस्सलाम का मस्नून तरीका़ था।

सहाबा ए किराम रदि अल्लाहु ‘अन्हुम और हमारे बुजुर्गाने किराम रहिमहुल्लाहु ‘अलयहीम भी जब लोगों को इस्लाम की दावत देते और इस्लाम की तरफ बुलाते या उन्हें नसीहत करते या उनकी इस्लाह करते, तो वो नबी ए करीम सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम और अंबिया-ए-किराम किराम की इस मुबारक सुन्नत पर ‘अमल करते थे।

फिरौन को इस्लाम की दावत देना

जिस वक्त अल्लाह त’आला ने हज़रत मूसा और हज़रत हारून ‘अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया कि फिरऔन के पास जाएं और उसे इस्लाम की दावत दें, तो अल्लाह त’आला ने उन दोनों को उससे नरमी से बात चीत करने का हुक्म दिया।

अल्लाह त’आला का फरमान है:

فَقُولَا لَهُ قَوْلًا لَّيِّنًا لَّعَلَّهُ يَتَذَكَّرُ أَوْ يَخْشَىٰ

तुम दोनों उससे (फ़िरऔन से) नरमी से बात करना, हो सकता है वह नसीहत कबूल करे या (अल्लाह त’आला से) डर जाए।

यह बात ध्यान देने के काबिल है कि फिरौन ने खुदा होने का दावा किया था, जो सबसे बड़ा गुनाह है, फिर भी अल्लाह त’आला ने हज़रत मूसा और हज़रत हारून अलैहिमुस्सलाम को हुक्म दिया कि जब वह उसे दीन की दावत दें, तो नरमी और सभ्यता के बात करें।

खलीफा हारून रशीद की एक शख्स को नसीहत देना

ख़लीफ़ा हारून रशीद रहिमहुल्लाह के बारे में एक घटना नक़ल की गई है कि एक शख्स उनके पास आया और लोगों के सामने उनसे सख़्त लहजे में बात की और उनसे कहा: ऐ हारून! अल्लाह से डर।

जब हारून रशीद रहिमहुल्लाह ने उस शख्स का सख़्त बर्ताव देखा, तो वह उसे नसीहत करने के लिए एक तरफ ले गए और उससे कहा:

ऐ फुलां! मेरे साथ इन्साफ वाला मामला करो! मुझे यह बताओ कि मैं ज़्यादा बुरा हूँ या फिरौन ज़्यादा बुरा था?

उसने जवाब दियाः फ़िरऔन तुमसे भी बदतर था।

उसके बाद, हारून रशीद रहिमहुल्लाह ने उससे पूछा: क्या तुम बेहतर हो या नबी मूसा ‘अलैहिस्सलाम बेहतर हैं?

उस आदमी ने जवाब दिया: नबी मूसा ‘अलैहिस्सलाम मुझसे बहुत ज़्यादा बेहतर हैं।

फिर खलीफा हारून रशीद रहिमहुल्लाह ने उससे कहा:

क्या तुम नहीं जानते कि जब अल्लाह त’आला ने हज़रत मूसा ‘अलैहिस्सलाम और उनके भाई हारून ‘अलैहिमुस्सलाम को फिरऔन के पास भेजा, तो अल्लाह त’आला ने उनको हुक्म दिया कि फिरऔन से नरमी से बात करें। इसके खिलाफ (विपरीत) तुमने लोगों के सामने मुझसे सख़्त लहजे में बात की और तुम ने उस तरीके को नहीं अपनाया, जिसको अल्लाह त’आला ने हज़रत मूसा और हज़रत हारून अलैहिमुस्सलाम को अपनाने का हुक्म दिया था और न तुमने अल्लाह त’आला के नेक बंदों के बुलंद अख्लाक को अपनाया।

वह शख्स एक मुखलिस इन्सान था; इसलिए उसने अपनी गलती का स्वीकार किया और हारुन रशीद रहिमहुल्लाह से माफी मांगी और उनसे कहा: मुझसे गलती हो गई। मैं अल्लाह त’आला से मगफिरत तलब करता हूं।

हारुन रशीद रहिमहुल्लाह ने इस शख्स के लिए अपने दिल में कोई मैल नहीं रखा और उसको यह कहते हुए फौरन माफ कर दिया कि अल्लाह त’आला तुम्हें माफ करें।

उसके बाद, हारून रशीद रहिमहुल्लाह ने हुक्म दिया कि इस शख्स को तोहफे के तौर पर बीस हज़ार दिरहम दिए जाएं; लेकिन उसने लेने से इनकार कर दिया।

इससे हमें मालूम होता है कि जब हम किसी शख्स को नसीहत करें या उसकी इस्लाह करें तो हमें सोचना चाहिए कि हम हज़रत मूसा ‘अलैहिस्सलाम से बड़े नहीं हैं और जिस शख्स को मैं नसीहत कर रहा हूँ वह फ़िरऔन से ज़्यादा बुरा नहीं है। इसलिए हमें उससे नरमी और अच्छे तरीके से बात करनी चाहिए और किसी भी तरह से उसको नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

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