बाग़े मुह़ब्बत (बत्तीसवाँ अंक)

शरीक-ए-हयात का इंतिख़ाब – भाग १

जीवनसाथी पसंद करते वक्त हर शख्स के मन में कुछ फिकर और डर होता हैं।

लड़के को अच्छी बीवी के इंतिख़ाब की फिकर होती है जो उसके स्वभाव के मुताबिक हो; ताकि वह खुशगवार ज़िन्दगी गुज़ार सके। उसी तरह, उसको यह फिकर होती है कि वह ऐसी बीवी का इंतिख़ाब करे जो उसके बच्चों के लिए एक अच्छी माँ बन सके और वो उसके खानदान वालों के साथ इज़्ज़त और वकार के साथ रह सके।

दूसरी ओर, लड़की को एक ऐसे शौहर के इंन्तिखाब की फिकर होती है, जो उसकी दीनी और दुन्यवी ज़रूरतों और तक़ाज़ों को पूरा कर सके और माली ऐतेबार से वह उसकी हिफाज़त कर सके।

आमतौर पर लोग निकाह के वक्त इन बातों को लेकर फिक्रमंद होते हैं; क्योंकि वो जानते हैं कि निकाह ज़िन्दगी का एक नया सफर है; इसलिए जीवनसाथी का इंन्तिखाब या तो जिंदगी में खुशियाँ लाएगा या ग़म, तकलीफ़ और ज़िन्दगी भर के अफसोस और नदामत का ज़रिया बनेगा।

नेक लाइफ पार्टनर का इंन्तिखाब

इस्लाम हमें सिखाता है कि निकाह के वक्त जैसे हम इन बातों का ध्यान करते हैं कि वह इन्सान जिससे शादी होने वाली है एक शरीफ़ घराने से हो, दिखने में पुर-कशिश (आकर्षक) हो और उसकी माली हैसियत अच्छी हो; लेकिन उसके साथ साथ हमारी सबसे अहम और बुनियादी फिकर यह होनी चाहिए कि उस इन्सान के अंदर दीनदारी और तक़्वा हो।

नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि चार चीजों में से किसी एक चीज़ की वजह से औरत से निकाह़ किया जाता है: – या तो उसके माल की वजह से या उसकी खानदानी हैसियत की वजह से या उसकी खुबसूरती की वजह से या उसके दीन और दीनदारी की वजह से; इसलिए (शरीक-ए-हयात का इंन्तिखाब करते वक्त) तुम दीनदार बीवी का इंन्तिखाब करके कामयाबी हासिल करो। (अगर तुम नेक बीवी का इंन्तिखाब नहीं करोगे) तो तुम बाद में अफसोस करोगे।

सहाबा ए किराम रदि अल्लाहु ‘अन्हुम और ताबि’ईन रहिमहुल्लाहु ‘अलयहीम अपने औलाद के लिए शरीक-ए-हयात (जीवन-साथी) के इंन्तिखाब की अहमियत और महत्व को अच्छी तरह समझते थे। वो जानते थे कि अगर शौहर मुत्तक़ी और परहेज़गार होगा तो वो अपनी बीवी के हुक़ूक़ और अधिकारों को पूरा करेगा और उसके साथ अच्छा व्यवहार करेगा। इसके बर-ख़िलाफ़, अगर शौहर दीनदार और मुत्तकी़ नहीं होगा, तो वो अपनी बीवी के हुक़ूक़ की अदायगी में कोताही करेगा और बात बात पे उसके साथ बद-सुलूकी और खराब बर्ताव करेगा या उस पर ज़ुल्म करेगा।

हज़रत हसन बसरी रहिमहुल्लाहु की नसीहत

एक मर्तबा एक शख्स हज़रत हसन बसरी रहिमहुल्लाहु के पास आया। उसने कहा: मेरे पास मेरी बेटी के लिए बहुत से निकाह़ के पैगाम आए हैं, बराए मेहरबानी मेरी रहनुमाई फ़रमाएं कि मैं किसका पैगाम कबूल करूं?

हज़रत हसन बसरी रहिमहुल्लाह ने जवाब दिया: तुम अपनी बेटी का निकाह़ ऐसे शख्स से करावो, जिसके दिल में अल्लाह का खौफ हो। फिर उन्होंने उसकी वजह बयान की कि अगर वह शख्स उसको पसंद करेगा, तो वह उसकी इज्ज़त और कद्र करेगा और अगर वो उसे नापसंद करेगा, तो कम से कम उस पर ज़ुल्म नहीं करेगा। (मिर्का़त शरह़ मिश्कात)

हज़रत अबू दर्दा रदि अल्लाहु ‘अन्हु का अपनी बेटी का निकाह़ कर देना

नीचे हज़रत अबू दर्दा रदी अल्लाहु ‘अन्हु का एक असरदार वाक़िआ नक़ल किया जा रहा है कि उन्होंने अपनी प्यारी बेटी के लिए कैसे शौहर का इंन्तिखाब फ़रमाया:

एक बार, यज़ीद बिन मुआविया ने हज़रत अबू दर्दा रदि अल्लाहु ‘अन्हु को उनकी साह़ेबजा़दी से निकाह़ का पैगाम भेजा। हज़रत अबू दर्दा रदि अल्लाहु ‘अन्हु ने यज़ीद का पैगाम क़बूल नहीं किया, बावजूद इसके कि यज़ीद हा़किमे वक्त था।

उसके बाद यज़ीद का एक खादिम, जो एक नेक शख्स था, यज़ीद के पास आया और उससे कहा: आप मुझे इजाज़त दें कि मैं हज़रत अबू दर्दा को निकाह का पैगाम भेजुं कि वो अपनी बेटी से मेरा निकाह करा दें।

यजी़द को गुस्सा आया और उसने कहाः यहां से निकल जाओ! तेरा नाश हो! लेकिन उस शख्स ने कहा: बराए मेहरबानी मुझे इजाज़त दे दें, अल्लाह आपको खुश रखे! आख़िरकार यज़ीद ने उसे इजाज़त दे दी.

फिर इस शख्स ने हज़रत अबू दर्दा के पास निकाह का पैगाम भिजवाया, हज़रत अबू दर्दा ने उसका पैगाम कबूल फ़रमा लिया और उससे अपनी बेटी का निकाह़ कर दिया.

यह खबर लोगों के बीच मशहूर हो गई और लोग चर्चा करने लगे कि कैसे यजी़द का रिश्ता कबूल नहीं हुआ और उसके एक गरीब खादिम का रिश्ता कबूल हो गया।

जब हज़रत अबू दर्दा रदि अल्लाहु ‘अन्हु से इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने फ़रमाया: मैंने अपनी बेटी दर्दा के मुस्तकबिल (फ्यूचर) के बारे में बहुत ज़्यादा गौर-ओ-फिकर किया और सोचा, कि अगर मैं उसका निकाह़ यज़ीद से करा दूं (तो उसकी दीनी हालत कैसी रहेगी?)

फिर हज़रत अबू दर्दा रदि अल्लाहु ‘अन्हु ने हाज़िर लोगों को मुखातब करके फ़रमाया:

सोचो, अगर मैं यजीद से अपनी बेटी का निकाह़ कर देता तो पहली रात में मेरी बेटी का क्या होता, जब वह यजी़द के आलीशान महल में दाखिल हो रही है और अपने सामने बेशुमार खादिम और नौकर-चाकरों को देख रही है, नीज़ उसकी आंखों के सामने बेपनाह माल-ओ-दौलत चमक रही है. सिर्फ यह सोच कर कि अगर ये मेरी बेटी की पहली रात का हाल होगा कि वो दुनिया की माल-ओ-दौलत से किस क़दर मुतअस्सिर (प्रभावित) होगी, तो उस दिन उसके दीन का क्या हाल होगा (तो अगर उस दिन उसका दीन खतरे में पड़ेगा, तो उसकी मुस्तकबिल की पूरी ज़िंदगी का क्या हाल होगा, इसीलिए मैंने उसका निकाह़ यजी़द से नहीं कराया, बल्कि मैंने उसके लिए एक गरीब दीनदार आदमी का रिश्ता कबूल कर लिया)।

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