तलाक की सुन्नतैं और आदाब – ६

खुला

अगर मियां बीवी के दरम्यान सुलह मुमकिन न हो और शौहर तलाक देने से इनकार करे, तो बीवी के लिए जायज़ है कि वह शौहर को कुछ माल या अपना महर दे दे और उसके बदले तलाक ले ले।

अगर शौहर ने अभी तक महर अदा नहीं किया है, तो बीवी शौहर से कह सकती है कि वह मुझे महर मत दो और उसके बदले मुझे तलाक दे दो।

इस तरह अगर कोई औरत अपने शौहर से अलग होती है तो उस को ‘खुला’ कहा जाता है।

जब बीवी शौहर से माल के बदले तलाक की दरखास्त करे और शौहर उससे कहे कि मैंने तुम्हें माल के बदले छोड़ दिया या महर के बदले खुला कबूल कर लिया, तो खुला सही होगा और एक तलाके बाईन हो जाएगी।

इसके बाद शौहर को रुजू’ करने का हक़ हासिल नहीं होगा.

खुला के सही होने के लिए शर्त यह है कि बीवी की तरफ से माल की पेशकश (प्रस्ताव) और शौहर की तरफ कबूल करना दोनों एक ही मजलिस में पाए जाएं।

चुनाचें अगर शौहर ने उसी मजलिस में खुला कबूल नहीं किया; बल्के दूसरी मजलिस में कबूल किया या बीवी शौहर के कबूल करने से पहले मजलिस से उठ गई, तो दोनों सूरतों में खुला सही नहीं होगा।

खुल’अ के बारे में शरीअत का हुकम

खुल’अ के बारे में शरीअत का हुकम यह है कि अगर निकाह के हुक़ूक़ की ख़िलाफ़-वर्ज़ी बीवी की तरफ से हो, तो इस सूरत में शौहर के लिए जाइज़ होगा कि वो अपने महर का मुतालबा (माँगना) करे। शौहर के लिए महर की रकम से ज्यादा का मुतालबा करना मकरूह-ए-तंज़ीही होगा।

अगर निकाह के हुक़ूक़ की ख़िलाफ़-वर्ज़ी शौहर की तरफ से हो, तो इस सूरत में शौहर के लिए बीवी से किसी भी चीज़ का मुतालबा करना जाइज़ नहीं होगा और मकरूह-ए-तहरीमी होगा।

सिर्फ शौहर खुल’अ दे सकता है; चुनाचें अगर बीवी अदालत में मुकदमा दर्ज करे और काजी साहब से खुल’अ का फैसला तलब करे तो काजी शौहर के बगैर खुल’अ का फैसला नहीं कर सकता है।

अगर काजी साहब शौहर के बगैर खुल’अ का फैसला करे तो खुल’अ दुरुस्त नहीं होगा।

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