दुआ की सुन्नतें और आदाब – १

दुआ अल्लाह सुब्हानहु व ता’आला की बेशुमार नेमतों और ख़ज़ानों के हुसूल का ज़रिया है। अहादीसे मुबारका में दुआ की बहुत सी फ़ज़ीलतें वारिद हुई हैं। हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि दुआ इबादत का मग़ज़ है।

दूसरी हदीस शरीफ़ में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है कि अल्लाह ता’आला उस बन्दे से ख़ुश होते हैं, जो दुआ करता है और अल्लाह ता’आला से अपनी ज़रूरतें माँगता है और अल्लाह ताआला उस बन्दे से नाराज़ होते हैं, जो दुआ नहीं करता है और उन से अपनी ज़रूरतें नहीं माँगता है।

दुनिया में आम तौर पर ऐसा होता है कि जब कोई शख्स बार बार लोगों से माँगता है और उनके सामने दस्ते सवाल दराज़ करता है, तो वे नाराज़ हो जाते हैं और मांगने वाले को हक़ारत और ज़िल्लत की निगाह से देखते हैं। लेकिन हमारे ख़ालिक़ और मालिक अल्लाह सुब्हानहु व ताआला को अपने बंदों से इतनी ज़ियादा मोहब्बत है कि वे अपने बंदों को दुआ करने का हुक्म दे रहे हैं और जब वे उन से माँगते हैं, तो वे ख़ुश होते हैं।

इस लिए हर मुसलमान के लिए बेहद ज़रूरी है कि वह दुआ को हर दिन का मामूल बना ले और अपने तमाम अमूर की आसानी, ख़ैर-ओ-आफ़ियत और मुसीबतों से नजात के लिए अल्लाह ताआला से फ़ज़ल-ओ-करम की भिख माँगे।

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