हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“बड़ी ज़रूरत इस की है के हर व्यक्ति अपनी फ़िकर में लगे और अपने आमाल की इस्लाह करे. आज कल यह मरज़ आाम हो गया है अवाम में भी ख़वास में भी के दूसरों की तो इस्लाह की फ़िकर है और अपनी ख़बर नहीं. दूसरों की जूतियों की सुरक्षा की बदौलत अपनी गुथड़ी उठवा देना कैसी हिमाक़त है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत. जिल्द नं-२३, पेज नं-५६)
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