हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“हक़ तआला के एहसानात लातादाद तथा ला तुहसो (अनगिनत तथा न गिने जानेवाले) हैं. मषलन सिहत एक एसी चीज़ है के तमाम सलतनत उस के बराबर नहीं. अगर किसी बादशाह को मरज़ (बीमारी) लाहिक़ हो जाए और तमाम सलतनत दे देने पर सिहत हासिल हो तो कुल सलतनत दे देगा.
और मषलन दुनिया में अकलो शुर्ब (खाने पीने) के असबाब हक़ तआला ने एसे आाम रखे हैं के हर व्यक्ति इस्तिमाल कर रहा है और बिला क़ीमत. अगर फ़र्ज़ कीजिए किसी को शिद्दत की प्यास हो और पानी न मिलता हो और करोड़ों रूपिए के इवज़ (बदले) में एक ग्लास पानी मिल सके तो आदमी ग़नीमत समझ कर कुल माल सर्फ़ कर देगा और एक ग्लास पानी ख़रीदेगा.
इसी तरह और नेअमतों को समझना चाहिए. हम जिस नेअमत को कम क़ीमत तसव्वुर करते हैं न मिलने पर उस की क़ीमत मालूम हो सकती है के किस क़दर क़ाबिले क़दर है.
हक़ तआला का एहसान है के बिला क़ीमत आमो ख़ास हर व्यक्ति इस्तेमाल कर रहा है. इस नेअमते आम्मह की क़दर करनी चाहिए के इनायत फ़रमा रहे हैं.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत. जिल्द नं-१२, पेज नं-१०८)
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