अख़लाक़ और निस्बत

शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः

“दूसरी बात यह है के निस्बत अलग है और अख़लाक़ अलग हैं. निस्बत ख़ास तअल्लुक़ मअल्लाह है जितना बढ़ावोगे बढ़ेगा घटावोगे घटेगा और एक है अख़लाक़. अख़लाक़ का तअल्लुक़ हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सीरते तय्यिबा से है के आप के ख़साईल और शमाईल के इत्तिबाअ का नाम अख़लाक़ है. हज़रत ने इस मोक़े पर यह शेअर पढ़ाः

रंग लाती है हिना पत्थर पे घिस जाने के बाद

देखो ! प्यारो मुजाहदा से आएगा, अपना अपना करने से आएगा. किसी की हज़रत (बुज़ुर्ग) की दुआ से नहीं होगा.” (मलफ़ूज़ात हज़रत शैख़ (रह.), पेज नं-१११)

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