हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः “मौजूदा (दौर की) तरक़्क़ी का हासिल तो हिर्स (लालच) है और शरीअत ने हिर्स (लालच) की जड़ काट दी है. सहाबए किराम (रज़ि.) ने जो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के नमूना थे कहीं एसे ख़्याल को अपने दिल में …
और पढ़ो »मोहब्बत का बग़ीचा (बीसवां प्रकरण)
بسم الله الرحمن الرحيم उम्मते मुस्लिमा की इस्लाह की फ़िकर हज़रत उमर (रज़ि.) कि ख़िलाफ़त के ज़माने में एक शख़्स मुल्के शाम से हज़रत उमर (रज़ि.) की मुलाक़ात के लिए मदीना मुनव्वरा आता था. यह शामी शख़्स मदीना मुनव्वरा में कुछ वक़्त क़याम करता था और हज़रत उमर (रज़ि.) की …
और पढ़ो »(११) जनाज़े से संबंधित मुतफ़र्रिक़ मसाईल
मय्यित के जिस्म से जुदा अंग का ग़ुसल सवालः- बसा अवक़ात एसा होता है के मय्यित के जिस्म से बाज़ अंग जुदा होते हैं मषलन गाड़ी के हादसे वग़ैरह में मय्यित के कुछ अंग टूट जाते हैं और जिस्म से जुदा होते हैं, तो क्या ग़ुसल के समय उन अलग …
और पढ़ो »रौज़-ए-अक़दस की ज़ियारत की फ़ज़ीलत
जिस ने मेरी वफ़ात के बाद मेरी क़बर की ज़ियारत की, वह उस शख़्स की तरह है जिस ने मेरी ज़िन्दगी में मेरी ज़ियारत की...
और पढ़ो »हमारे बड़ों के अख़लाक़
“हम ने अपने बड़ों के मुतअल्लिक़ सुना के लोग उन के हालात देख कर और उन की सूरतों को देख कर ही मुसलमान हो जाया करते थे, एक हम हैं के हमारे अख़लाक़ देख कर लोग कहां जाएं.”...
और पढ़ो »(१०) जनाज़े से संबंधित मुतफ़र्रिक़ मसाईल
ग़ुसल के शुरू में जब मय्यित को वुज़ू कराया जाए, तो कहां से शुरू करना चाहिए यअनी पेहले मय्यित के हाथों को गट्टों समैत धोया जाए या पेहे चेहरा धोया जाए?...
और पढ़ो »नमाज़ दीन का स्थंभ है
नमाज़ को हदीष में “इमादुद्दीन” (दीन का स्थंभ) फ़रमाया गया है. उस का यह मतलब है के नमाज़ पर बाक़ी दीन निलंबित है, और वह नमाज़ ही से मिलता है. नमाज़ में दीन का तफ़क्कुह (ज्ञान) भी मिलता है...
और पढ़ो »(९) जनाज़े से संबंधित मुतफ़र्रिक़ मसाईल
अगर मय्यित के नाख़ुनों पर नाख़ुन पालिश लगी हो, तो क्या ग़ुसल देने वाले के लिए उस को निकालना ज़रूरी है?...
और पढ़ो »सब से अफ़ज़ल हम्द और दुरूद
“ए अल्लाह ! तेरे ही लिए हम्द है जो तेरी शान के मुनासिब है पस तु मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूद भेज जो तेरी शान के मुनासिब है और हमारे साथ भी वह मामला कर जो तेरी शायाने शान हो. बेशक तु ही उस का मुस्तहिक़ है के तुझ से ड़रा जाए और मग़फ़िरत करने वाला है.”...
और पढ़ो »मोहब्बत का बग़ीचा (उन्नीसवां प्रकरण)
अल्लाह सुब्हानहु वतआला ने इन्सान को बेशुमार नेअमतों से नवाज़ा है. कुछ नेअमतें शारिरिक हैं और कुछ नेअमतें रूहानी हैं. कभी एक नेअमत एसी होती है के वह बेशुमार नेअमतों को शामिल होती है. मिषाल के तौर पर आंख एक नेअमत है, मगर...
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