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हर अच्छे काम का अंत इस्तिग़फ़ार से करना

लिहाज़ा तबलीग़ का काम भी हंमेशा इस्तिग़फ़ार ही पर ख़तम किया जाए. बंदे से किसी तरह भी अल्लाह तआला के काम का हक़ अदा नहीं हो सकता. तथा एक काम में व्यस्तता बहोत से दूसरे कामों के न हो सकने का भी कारण बन जाती है. तो इस प्रकार की चीज़ों की क्षतीपूर्ती (तलाफ़ी) के लिए भी हर अच्छे काम के ख़तम पर इस्तिग़फ़ार करना चाहिए...

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नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – ३

तकबीराते इन्तेक़ालिया (वह तकबीरें जो नमाज़ में एक हयअत से दूसरी हयअत की तरफ़ मुनतक़िल होने के दौरान कहीं जाती हैं) की इब्तिदा उस वक़्त करें, जब आप एक हयअत से दूसरी हयअत की तरफ़ मुनतक़िल होने लगें और दूसरी हयअत पर पहोंच कर ख़तम कर दें. मषलन, जुं ही आप क़याम से रूकुअ के लिये झुकना शुरूअ करें, तो तकबीर शुरूअ कर दें और रूकुअ तक पहोंच कर तकबीर ख़तम कर दें...

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(२) जनाज़े से संबंधित मुतफ़र्रिक़ मसाईल

अगर कोई मय्यित के घर जाए और वहां खाना पेश किया जा रहा हो, तो क्या वह खाना तनावुल करना जाईज़ है? क्या मय्यित के घर उस के घरवाले और मेहमानों के लिए खाना भेजना जाईज़ है?...

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ग़फ़लत की जगहों में दुरूद शरीफ़ पढ़ना

“ए मेरे भतीजे ! मेरी किताब “अश शिफ़ा बितअरीफ़ि हुक़ूक़िल मुस्तफ़ा” को मज़बूती से पकड़ लो और उस को अल्लाह तआला के नज़दीक मक़बूलियत हासिल करने का ज़रीआ बनावो.”...

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अल्लाह तआला क्षमा के लिए बहाना चाहता है

हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः   “एक अहले इल्म रोने लगे के न मालूम मेरा ख़ातमा कैसा होगा. फ़रमाया में भविष्य (मुसतक़बिल) पर क़सम तो खाता नहीं मगर इस को बक़सम केहता हुं के अल्लाह तआला बख़्शने के लिए तो बहाना ढुंढते हैं और अज़ाब …

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