दूसरी रकात (१) पेहली रकअत के दूसरे सजदे के बाद तकबीर केह कर दूसरी रकअत के लिए खड़ी हो जाऐं. (२) सजदे से उठते हुए पेहले पेशानी उठाए, फिर नाक, फिर हाथों और आख़िर में घुटनों को उठाऐं. (३) सजदे से उठते हुए ज़मीन का सहारा न लें (मगर यह …
और पढ़ो »हज़रत उम्मे-सलमह रद़ियल्लाहु अन्हा की हज़रत सईद बिन-ज़ैद रद़ियल्लाहु अन्हु को अपनी नमाज़े-जनाज़ा पढ़ाने की वसीयत
أوصت أم المؤمنين السيدة أم سلمة رضي الله عنها أن يصلي عليها سعيد بن زيد رضي الله عنه (مصنف ابن أبي ش…
तजीयत की सुन्नतें और आदाब – 1
मुसीबतज़दा लोगों के साथ ताज़ियत (संवेदना व्यक्त करना) इस्लाम एक सम्पूर्ण और व्यापक जीवन-प्रणाली है। …
एक दुरूद के बदले सत्तर इनाम
عن عبد الرحمن بن مريح الخولاني قال سمعت أبا قيس مولى عمرو بن العاصي يقول: سمعت عبد الله بن عمرو يقول…
अल्लाह त’आला की बेपनाह रहमतें
عن ابن عمر وأبي هريرة رضي الله عنهم قالا قال رسول الله صلى الله عليه وسلم صلوا علي صلى الله عليكم...…
मस्जिद के काम
हज़रत मौलाना मुहम्मद इल्यास साहब (रह़िमहुल्लाह) ने एक मर्तबा इर्शाद फ़रमाया: मस्जिदें, मस्जिदे-नबवी …
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नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – १३
सजदा (१) तकबीर कहें और हाथ उठाए बग़ैर सजदे मे जायें. (२) सजदे में जाते हुए पेहले ज़मीन पर घुटनों को रखें, फिर हथेलियों को ज़मीन पर रखें, फिर नाक को और आख़िर में पेशानी को रखें. (३) सजदे की हालत में ऊंगलियों को एक दूसरे से मिलावे और क़िब्ला …
और पढ़ो »नुसरत का मदार
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः “फ़तहो नुसरत का मदार क़िल्लत(कमी) और कषरत(ज़्यादती) पर नहीं वह चीज़ ही और है. मुसलमानों को सिर्फ़ उसी एक चीज़ का ख़्याल रखना चाहिए यअनी ख़ुदा तआला की रिज़ा फिर काम में लग जाना चाहिए, अगर कामयाब हों शुकर …
और पढ़ो »नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – १२
रूकूअ और क़ौमा (१) सुरए फ़ातिहा और सूरत पढ़ने के बाद तकबीर कहें और हाथ उठाए बग़ैर रूकुअ में जायें. नोटः जब मुसल्ली नमाज़ की एक हयअत (हालत) से दूसरी हयअत (हालत) की तरफ़ जावे, तो वह तकबीर पढ़ेगी. इस तकबीर को तकबीरे इन्तेक़ालिया केहते हैं. तकबीरे इन्तेक़ालिया का हुकम …
और पढ़ो »शाबान की पंदरहवीं शब की फ़ज़ीलत
सवालः- मैंने एक अरब शैख़ से सुना कि शब-ए-बारात की फ़ज़ीलत के सिलसिले में जितनी भी हदीस वारिद हुई है वह सब ज़ईफ़ है, और उन में से कोई हदीस सहीह नहीं है. लिहाज़ा हमें इस शब (रात) और उस के अगले दिन को अहमियत देने की ज़रूरत नहीं। क्या …
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