रात की इब्तिदा ग़ुरूबे शम्स से होती है और इन्तिहा सुबह सादिक़ के वक़्त होती है. जहां तक दिन के अवक़ात की बात है, तो बेहतर यह है के शौहर दिन के अवक़ात भी अपनी बीवीयों के दरमियान बराबरी के साथ गुज़ारे (अगरचे उस में बराबरी ज़रूरी नहीं है)...
और पढ़ो »हज़रत तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु का अपना ‘अहद पूरा करना
रसूलु-ल्लाह सल्ल-ल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने एक बार फ़रमाया: طلحة ممن قضى نحبه (أي ممن وفوا بعهدهم من ال…
सुबह-शाम दुरूद शरीफ़ पढ़ना
عَن ابي الدرداء رضي الله عنه قال قال رسول الله صلى الله عليه و سلم مَن صَلَّى عَلَيَّ حِينَ يُصْبِحُ…
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) का दुरूद
عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ رَضِيَ اللهُ عَنهُمَا أَنَّهُ كَانَ إذَا صَلَّى عَلَى النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَ…
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम के बहोत ज़्यादह ख़ुश होने का कारण
عن أبي طلحة الأنصاري رضي الله عنه قال أصبح رسول الله صلى الله عليه وسلم يوما طيب النفس يرى في وجهه ا…
क़यामत के दिन नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम से ज़्यादा निकट शख़्स
عَن عَبدِ اللهِ بنِ مَسعُودٍ رَضِيَ اللهُ عَنهُ أَنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيهِ وَ سَلَّم ق…
નવા લેખો
हर अच्छे काम का अंत इस्तिग़फ़ार से करना
लिहाज़ा तबलीग़ का काम भी हंमेशा इस्तिग़फ़ार ही पर ख़तम किया जाए. बंदे से किसी तरह भी अल्लाह तआला के काम का हक़ अदा नहीं हो सकता. तथा एक काम में व्यस्तता बहोत से दूसरे कामों के न हो सकने का भी कारण बन जाती है. तो इस प्रकार की चीज़ों की क्षतीपूर्ती (तलाफ़ी) के लिए भी हर अच्छे काम के ख़तम पर इस्तिग़फ़ार करना चाहिए...
और पढ़ो »नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – ३
तकबीराते इन्तेक़ालिया (वह तकबीरें जो नमाज़ में एक हयअत से दूसरी हयअत की तरफ़ मुनतक़िल होने के दौरान कहीं जाती हैं) की इब्तिदा उस वक़्त करें, जब आप एक हयअत से दूसरी हयअत की तरफ़ मुनतक़िल होने लगें और दूसरी हयअत पर पहोंच कर ख़तम कर दें. मषलन, जुं ही आप क़याम से रूकुअ के लिये झुकना शुरूअ करें, तो तकबीर शुरूअ कर दें और रूकुअ तक पहोंच कर तकबीर ख़तम कर दें...
और पढ़ो »(२) जनाज़े से संबंधित मुतफ़र्रिक़ मसाईल
अगर कोई मय्यित के घर जाए और वहां खाना पेश किया जा रहा हो, तो क्या वह खाना तनावुल करना जाईज़ है? क्या मय्यित के घर उस के घरवाले और मेहमानों के लिए खाना भेजना जाईज़ है?...
और पढ़ो »ग़फ़लत की जगहों में दुरूद शरीफ़ पढ़ना
“ए मेरे भतीजे ! मेरी किताब “अश शिफ़ा बितअरीफ़ि हुक़ूक़िल मुस्तफ़ा” को मज़बूती से पकड़ लो और उस को अल्लाह तआला के नज़दीक मक़बूलियत हासिल करने का ज़रीआ बनावो.”...
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