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शाबान की पंदरहवीं शब की फ़ज़ीलत

सवालः- मैंने एक अरब शैख़ से सुना कि शब-ए-बारात की फ़ज़ीलत के सिलसिले में जितनी भी हदीस वारिद हुई है वह सब ज़ईफ़ है, और उन में से कोई हदीस सहीह नहीं है. लिहाज़ा हमें इस शब (रात) और उस के अगले दिन को अहमियत देने की ज़रूरत नहीं। क्या …

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मोहब्बत का बग़ीचा (चोबीसवां प्रकरण)‎

जिस तरीक़े से अंबिया (अलै.) और सहाबए किराम (रज़ि.) ने मख़लूक़ की ज़रूरतों को पूरा करने की कोशिश की, अल्लाह तआला हमें मख़लूक़ की ख़ैर ख़्वाही की फ़िकर अता फ़रमाई और उन की ज़रूरतों को पूरा करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाई. आमीन....

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नमाज़ की सुन्नतें और आदाब – ११

जब हाथों को उठाए, तो इस बात का अच्छी तरह ख़्याल रखें के हथेलियां का क़िब्ला रूख़ हों और ऊंगलियां अपनी प्राकृतिक हालत पर हों, न तो फैली हुई हों और न मिली हुई हों...

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इत्तेबाए सुन्नत का प्रबंध – २

हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही (रह.) और उन की इत्तेबाए सुन्नत का प्रबंध हज़रत मौलाना रशीद अहमद गंगोही (रह.) महान दीन के आलिम, जलील मुहद्दिष, बहोत बड़े फ़क़ीह और अपने ज़माने के वलीए कामिल थे. उन का सिलसिलए नसब वंशावली मशहूर सहाबी हज़रत अबु अय्यूब अन्सारी (रज़ि.) तक पहोंचता था. …

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हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही व-सल्लम की मोहब्बत अपनी ज़ात से भी ज़्यादा

उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़े में मेरी जान है (तुम्हारा इमान उस वक़्त तक मुकम्मल नहीं होगा) जब तक के में तुम्हारे नज़दीक तुम्हारी ज़ात से भी ज़्यादा महबूब न हो जावुं. हज़रत उमर (रज़ि.) ने फ़रमायाः बेशक अल्लाह की क़सम अब आप से मुझ अपनी ज़ात से भी ज़्यादा मोहब्बत है...

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