तलाक़ के प्रकार दीने इस्लाम में तलाक़ के तीन प्रकार हैंः (१) तलाक़े रजई (२) तलाक़े बाईन (३) तलाक़े मुग़ल्लज़ा (१) तलाक़े रजई (जिस के बाद शौहर को रूजूअ का हक़ है) उस तलाक़ को केहते हैं जहां शौहर स्पष्ट (सरीह लफ़ज़े तलाक़) तलाक़ शब्द बोल कर के अपनी बीवी …
और पढ़ो »जुम्आ के दिन दुरूद शरीफ़ पढ़ने की बरकत से दीनी और दुनयवी ज़रूरतों की तकमील
सुलहे हुदैबियह के मोक़े पर नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने हज़रत उषमान (रज़ि.) को मक्का मुकर्…
हज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु – इस्लाम के पहले मुअज़्ज़िन
ذكر العلامة ابن الأثير رحمه الله أن سيدنا بلالا رضي الله عنه كان أول من أذن في الإسلام. وكان يؤذّن ل…
इयादते-मरीज़ की सुन्नतें और आदाब – २
इयादते-मरीज़ के फज़ाइल सत्तर हज़ार फ़रिश्तों की दुआ का हुसूल हज़रत अली रद़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत ह…
दुरूद शरीफ़ ग़ुर्बत दूर करने का ज़रीआ
हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) से रिवायत है के एक मर्तबा नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के…
हज़रत बिलाल रद़ियल्लाहु अन्हु – हब्शियों में सबसे पहले मुसलमान
عن سيدنا أنس رضي الله عنه أنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: السباق (أقوامهم إلى الإسلام) أر…
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(१५) जनाज़े से संबंधित मुतफ़र्रिक़ मसाईल
मय्यित की जनाज़ा नमाज़ और तदफ़ीन में देरी सवालः- अगर किसी ग़ैर मुलकी व्यक्ति का इन्तिक़ाल हो जावे और उस के घर वाले (जो उस के वतन में मुक़ीम (रेहने वाले) हैं) उस की लाश की मांग करें, तो क्या हमारे लिए उस की लाश को उन की तरफ़ भेजना …
और पढ़ो »क़ुर्आने करीम की सुन्नतें और आदाब – ३
क़ुर्आने मजीद की तिलावत की सुन्नतें और आदाब (१) क़ुर्आने मजीद की तिलावत करने से पेहले इस बात का प्रबंध करें के आप का मुंह साफ़ हो. हज़रत अली (रज़ि.) फ़रमता हे हैं के बेशख तुम्हारे मुंह क़ुर्आन मजीद के लिए रास्ते हैं (यअनी क़ुर्आने मजीद की तिलावत मुंह से …
और पढ़ो »सहाबए किराम (रज़ि.) की शान में बदज़ुबानी करने वाले का बुरा अंजाम
रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के “जिस ने मेरे सहाबा को गाली दी, उस पर अल्लाह तआला, फ़रिश्तों और तमाम लोगों की लअनत हो. अल्लाह तआला के नज़दीक न उस की फ़र्ज़ इबादत मक़बूल होती है और न ही नफ़ल इबादत.” (अद दुआ लित तबरानी, रक़म नं- …
और पढ़ो »क़र्ज़ लेने का एक उसूल
शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः “क़र्ज़ की अदायगी वक़्त पर होना बहोत ज़रूरी और मुफ़ीद है. चुनांचे शुरू शरू में मुझ को अहबाब से क़र्ज़ क़ुयूद तथा शराइत के साथ मिला करता था, जब सब को इस बात का तजरबा हो गया के …
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