तिलावत के फ़ज़ाईल दुनिया नूर और आख़िरत में ख़ज़ाना हज़रत अबु ज़र (रज़ि.) बयान करते हैं के में ने एक मर्तबा रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) से अर्ज़ किया के ए अल्लाह के रसूल ! मुझे कोई नसीहत फ़रमाऐं. आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः तक़्वा को मज़बूती से पकड़ो, क्युंकि …
और पढ़ो »दुआ की सुन्नतें और आदाब – ७
(१७) बेहतर यह है कि जामे’ दुआ करें। हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि हज़रत रसूलुल्ल…
जन्नत में दाख़िल करने वाले अमल को छोड़ना
عن حسين بن علي رضي الله عنهما قال قال رسول الله صلى الله عليه و سلم... …
कोहे हिरा का खुशी से झूमना
ذات مرة، صعد رسول الله صلى الله عليه وسلم جبل حراء فتحرك (الجبل ورجف)، فقال رسول الله صلى الله عليه …
हररोज रात दिन तीन मर्तबा दुरूद-शरीफ़ पढ़ने का सवाब
عن ابي كاهل رضي الله عنه قال قال لي رسول الله صلى الله عليه وسلم... …
तबूक की लड़ाई के अवसर पर हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रद़ियल्लाह अन्हु का अपना माल खर्च करना
لما حضّ رسول الله صلى الله عليه وسلم الصحابة رضي الله عنهم على الإنفاق تجهيزا للجيش لغزوة تبوك، أنفق…
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हंमेशा नफ़ा देने वाला निवेष
शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः “दुनिया का कोई काम भी बग़ैर मेहनत, श्रम के नही हो सकता , तिजारत हो, ज़िराअत हो, सब में पापड़ बेलने पड़ते हैं. इसी तरह दीन का काम भी बग़ैर श्रम के नहीं हो सकता, मगर दोनों में …
और पढ़ो »मोहब्बत का बग़ीचा (छब्बिसवां प्रकरण)
بسم الله الرحمن الرحيم नेक औलाद – आख़िरत की असल पूंजी इन्सान पर अल्लाह तआला की बेश बहा नेअमतों में से एक नेअमत है, क़ुर्आने मजीद में अल्लाह तआला ने इस बड़ी नेअमत का ज़िकर फ़रमाया है. अल्लाह तआला का इरशाद हैः وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُم مِّنْ أَنفُسِكُمْ أَزْوَاجًا وَجَعَلَ لَكُم …
और पढ़ो »उम्मत के लिए हिदायत के सितारे
हुज़ूरे अक़दस (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का इरशाद है के “मेरे सहाबा (रज़ि.) (मेरी उम्मत के लिए) सितारों की तरह हैं, तुम उन में से जिस की पैरवी करोगे, हिदायत पावोगे.”(रज़ीन कमा फ़ी मिश्कातुल मसाबीह, अर रक़म नं- ६०१८) हज़रत उमर का गहरी मोहब्बत और हज़रत रसूलुल्लाह की यादें हज़रत …
और पढ़ो »सूरतुल कवषर की तफ़सीर
बेशक हम ने आप को ख़ैरे कषीर अता फ़रमाई है (१) सो आप अपने परवरदिगार की नमाज़ पढ़िए और क़ुर्बानी किजीए (२) बिलयक़ीन आप का दुश्मन ही बेनामो निशान है (३)...
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