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हज़रत जिब्रईल ‘अलैहिस्सलाम और रसूले करीम सल्लल्लाहु ‘अलैहि व सल्लम की बद दुआ

जो बुलंद आवाज़ से दुरूद शरीफ़ पढ़ेगा, उस को जन्नत मिलेगी, तो में ने और मजलिस के दीगर लोगों ने भी बुलंद आवाज़ से दुरूद शरीफ़ पढ़ा. जिस की बरकत से अल्लाह तआला ने हमारे गुनाहों को माफ़ फ़रमाया और अल्लाह तआला ने हम सब को जन्नत में दाख़िल कर दिया...

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निकाह की सुन्नतें और आदाब – ६

शरीअत ने मियां-बीवी में से हर एक को अलग अलग जिम्मेदारियां दी है, शरीअत ने दोनों को अलग ज़िम्मेदारियों का मुकल्लफ़ इस वजह से बनाया, क्युंकि मर्द और औरत मिज़ाज और स्वभाव के एतेबार से अलग अलग हैं, लिहाज़ा दोनों का आधिकारिक कर्तव्य एक नही हो सकता है...

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दीन की तब्लीग़ में मेहनत

“लोगों को दीन की तरफ़ लाने और दीन के काम में लगाने की तदबीरें सोचा करो (जैसे दुनिया वाले अपने दुनयावी मक़सदों के लिए तदबीरें सोचते रहते हैं) और जिस को जिस तरह से मुतवज्जेह कर सकते हो उस के साथ उसी रास्ते से कोशिश करो.”...

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ऐसी मजलिस का अंजाम जिस में न अल्लाह का ज़िकर किया जाए और न ही दुरूद पढ़ा ‎जाए

ऐसी मजलिस जिस में अल्लाह तआला का ज़िकर नही किया और रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पर दुरूद नहीं पढ़ा गया, उस को बहोत ज़्यादह बदबूदार मुरदार से तशबीह दी गई है जिस के क़रीब जाना कोई पसंद नही करता है...

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मोहब्बत का बग़ीचा (छठा प्रकरण)‎

यह बात मशहूर और प्रसिद्ध है के इन्सान के अख़लाक़ो आदात और उस के कार्य, उस की दिल की कैफ़ियात की तरजुमानी करते हैं. अगर किसी का दिल अल्लाह तआला और उस के रसूल (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की महब्बत से लबरेज़ हो...

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