शैख़ुल हदीष हज़रत मौलाना मुहमंद ज़करिय्या (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“अल्लाह का नाम लिए जावो मरने के बाद यही काम आवेगा, मेरे प्यारो ! कहना मानो फिर कोई तुम को केहने वाला नही रहेगा, जब मरने वाला मरता है तो यहां वाले तो युं केहते हैं, अहलो अयाल के लिए क्या छोड़ा और वहां वाले पूछते हैं क्या लाया, लिहाज़ा जो कुछ तुम्हारे पास है वहां के लिए भेज दो, अपनी ज़रूरत के वास्ते ज़रूरत के बक़दर रखो, वहां तो अपनी अपनी भरनी है. और अहलो अयाल दो रोज़ रोऐंगे और उस के बाद कोई नहीं रोएगा. तअज़ियत करने वाले झुटे दो आंसू बहा लेंगे, हमें छोड़ कर चले गए.” (मलफ़ूज़ात हज़रत शैख़ (रह.), पेज नं-१२६)
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