بسم الله الرحمن الرحيم
औरतों का इस्लामी लिबास
इस्लाम एक मुकम्मल दस्तूरे हयात है. इस में ज़िंदगी के तमाम शोबों (विभागों) के लिए हिदायतें हैं. इस्लाम इन्सान को लोगों के साथ मामला करने का तरीक़ा सिखाता है और दीन और दुनिया के तक़ाज़ों परअमल का रास्ता बताता है. नीज़ इन्सानी अधिकार की अदायगी की ताकीद करता है और उच्च अख़लाक़ तथा इक़दार के साथ मुत्तसिफ़ होने (जुड़े रेहने) की प्रेरणा देता है. उस में कोई शक नही है के सच्चाई, सच बोलना, अमानत दारी, वालिदैन के साथ अच्छा व्यव्हार, लोगों के साथ अच्छा बरताव तथा हया दार और पुर वक़ार लिबास पेहनने की तरग़ीब तथा ताकीद में कोई भी मज़हबे इस्लाम के बराबर (हम पल्ला) नहीं है और इस्लाम ने जिन उच्च अख़लाक़ तथा इक़दार की ताकीद की है, उन में “हया” अनुक्रमणिका में पेहले नंबर पर है.
यह बात ज़हन में रेहनी चाहिए के “हया” का संबंध सिर्फ़ लिबास से नहीं है, तथा लिबास के अंदर शर्मो हया का लिहाज़ इस्लाम की बुन्यादी तालीमात में से है, इस लिए के इन्सान अपने लिबास से पेहचाना जाता है और उस के मज़हबी शिआर से उस के मज़हब का पता चलता है. लिहाज़ा इन्सान जब इस्लामी लिबास पेहनता है, तो इस से इस्लाम की ख़ूबसूरती प्रस्तूत होती है और इस के लिबास को देख कर लोगों को मालूम होता है के वह “मुसलमान” है.
हमारे आक़ा (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने भविष्यवाणी की है के मेरी उम्मत पर एक एसा ज़माना आएगा जिस में हर तरफ़ फ़ितने फैल जाऐंगे, औरतें इन्तहाई बारीक लिबास पहनेंगी या इतना चुस्त लिबास पहनेंगी, जिस से उन के बदन की हयअत (आकार) ज़ाहिर होगी. एसी औरतों के लिए मुतअद्दद (बहोत सी) अहादीष में वईदें वारिद हुई हैं.
एक हदीष में हज़रत अबु हुरैरह (रज़ि.) नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का क़ौल नक़ल करते हैं के आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के “दोज़ख़ वालों की दो क़िसमें एसी हैं के जिन्हें में ने नहीं देखा. एक क़िसम तो उन लोगों की है जिन के पास बैलों की दुमों की तरह कोड़े होंगे, जिनसे वह लोगों को मारेंगे (ज़ुलम करेंगे) और दूसरी क़िसम उन औरतों की है, जो लिबास पेहनने के बावजूद नंगी होंगी (क्युंकि वह इनतिहाई चुस्त या इनतिहाई बारीक लिबास पेहनेंगी, जिस से उन के बदन की हयअत (आकार) आशकारा होगी) वह मरदों को अपनी तरफ़ माईल करेंगी और ख़ुद भी मरदों की तरफ़ माईल होंगी. उन के सर बख़्ती ऊंटो की तरह होंगे. वह औरतें जन्नत में दाख़िल नहीं होंगी और न ही जन्नत की ख़ुशबु पाऐंगी, जब के उस की ख़ुशबु इतनी इतनी मसाफ़त (दूरी) से महसूस की जा सकती है.” (मुस्लिम शरीफ़)
हदीषे बाला से ज़ाहिर है के हमें और ख़ुसूसन औरतों को कैसा लिबास पहनना चाहिए. यही वजह है के नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) सहाबए किराम (रज़ि.) के लिबास पर नज़र रखते थे और अगर आप को शरीअत की रू से किसी सहाबी का लिबास नामुनासिब नज़र आता तो आप फ़ौरन उन की इस्लाह फ़रमाते और मुनासिब लिबास पहनने की ताकीद करते.
चुनांचे एक मर्तबा हज़रत आंयशा (रज़ि.) की हमशीरा (बहन) हज़रत अस्मा बिन्ते अबु बकर (रज़ि.) नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की ख़िदमत में इस हाल में हाज़िर हुई के उन के जिसम पर बारिक कपड़े थे. तो नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़ौरन उन की इसलाह फ़रमाई और उन से फ़रमाया के औरत के जिसम का कोई भी हिस्सा नज़र नहीं आना चाहिए यअनी औरतों के लिए जिस तरह बारीक कपड़े पहनना मुनासिब नहीं है. इसीतरह इतना तंग कपड़ा पहनना भी मुनासिब नहीं है, जिस से उस के बदन की हयअत (आकार) ज़ाहिर हो. नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की यह नसीहत उन के ज़हनो दिमाग़ में इस तरह घर कर गई के वह अपनी ज़िन्दगी के आख़री अय्याम (दिनो) तक उस पर अमल पैरा रहीं. चुनांचे एख वाक़िआ मनक़ूल है के जब उन के साहबज़ादे हज़रत मुनज़िर बिन ज़ुबैर (रज़ि.) इराक़ से तशरीफ़ लाये, तो उन्होंने हज़रत अस्मा (रज़ि.) की ख़िदमत में एक कपड़ा पेश किया, जो उच्च क़िसम के सूत से तय्यार किया गया था. लेकिन वह बारीक था.
हज़रत अस्मा (रज़ि.) ने इस कपड़े को अपने हाथ से टटोला (चुंके उस वक़्त उन की बीनाई ख़तम हो चुकी थी) और फ़रमायाः उफ़ ! इस कपड़े को वापस कर दो. जब उन्होंने इस को लोटा दिया, तो हज़रत मुनज़िर बिन ज़ुबैर (रज़ि.) पर यह बात शाक़ गुज़री (मुश्किल लगी). चुनांचे उन्होंने अपनी मां से अरज़ कियाः अम्मी जान ! यह कपड़ा इतना बारीक नही है के इस से जिसम की हयअत (आकार) नज़र आयेगे. आप यह कपड़ा पहन सकती हैं. उन्होंने जवाब दियाः तुम्हारी बात ठीक है, मगर इस से जिसम की हयअत (आकार) ज़ाहिर होंगे. फिर उन्होंने उन के लिए मर्व में बने हुए सामान्य कपड़े ख़रीदे, तो उन्होंने क़बूल कर लिया और फ़रमायाः मुझे इस क़िसम के कपड़े पेहनाया करो (क्युंकि यह सुन्नत के अनुसार है). (तबक़ातुल कुबरा)
औरत का इस्लामी लिबास
इस्लामी तालीमात के अनुसार औरत का लिबास निम्नलिखित ख़ूबियों का हामिल होना चाहियेः
(१) जिस लिबास को औरत पेहने वह उस के पूरे बदन को छुपाये, अगर पूरे बदन को न छुपाये, तो वह शरई लिबास नहीं केहलायेगा, क्युंकि औरत के लिये ज़रूरी है के वह अपने दोनों पैरों और गट्टों समैत हाथों के अलावह अपने पूरे बदन और बाल को अजनबी मरदों से छुपाये.
(२) औरत का लिबास इतना बारीक या तंग न हो, जिस से औरत के बदन की हयअत (आकार) ज़ाहिर हो. अगर उस के बदन की हयअत (आकार) ज़ाहिर होगी, तो “कासियातुन आरियातुन” वाली हदीष के अन्दर दाख़िल होगी.
(३) जब औरत अपने घर से निकले, तो हया और वक़ार का ज़रूर ख़्याल रखे. हदीष शरीफ़ में आया है के जब वह घर से निकले, तो हिजाब पहन कर निकले और ख़ुश्बु न लगाये, इस लिये के इन्सान की फ़ितरत है के वह जिन्से मुख़ालिफ़ (विपरीत लिंग) की तरफ़ माईल होता है और पुर कशिश लिबास को देख कर और ज़्यादह मैलान पैदा होता है, यहां तक के इन्सान फ़ित्ना में मुब्तला हो जाता है.
(४) हर सिन्फ़ (लिंग) को चाहिये के दूसरे सिन्फ़ (लिंग) के लिबास से बचे यअनी मर्द औरत का लिबास न पेहने और औरत मर्द का लिबास न पेहने, क्युंकि नबिये करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का फ़रमान है के “अल्लाह तआला उन मर्दों पर लानत भेजते हैं, जो औरतों की मुशाबहत इख़्तियार करते हैं और उन औरतों पर लानत भेजते हैं, जो मर्दों की मुशाबहत इख़्तियार करती हैं. (तबरानी)
हम दुआ गो हैं के अल्लाह तआला हमारी औरतों में सिफ़ते “हया” को ज़िन्दा फ़रमाऐं और उन्हें नबिए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की सुन्नतों और अज़वाजे मुतह्हरात के तरीक़ों पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़रमायें. आमीन
Source: http://ihyaauddeen.co.za/?p=17045