हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“हज़रत इमाम अबु हनीफ़ा (रह.) की अदब की शान देखिए के किसी ने उन से सवाल किया के असवद अफ़ज़ल हैं या अलक़मा. फ़रमाया के हमारा मुंह तो इस क़ाबिल भी नही के उन हज़रात का नाम भी ले सकें न के उन में तफ़ाज़ुल का फ़ैसला करें. देखिए इमाम साहिब में अदब का कितना ग़लबा था. यह उन की फ़ितरी बात थी. इसी तरह एक सहाबी को देखिए जब उन से किसी ने पूछा के हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) बड़े हैं या आप. मुराद यह थी के उमर में कोन बड़े हैं. उस के लिए अकबर का लफ़्ज़ इस्तेमाल किया. उन सहाबी ने फ़रमाया के बड़े तो हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ही हैं लेकिन सन (उमर) मेरा ज़्यादा है.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-१०, पेज नं-४९)
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