قال النبي صلى الله عليه وسلم من صلى علي في يوم خمسين مرة صافحته يوم القيامة (القربة لابن بشكوال، الرقم: ۸۷، وقد سكت عنه السخاوي في القول البديع صـ ۲۸۹، ويفهم من سكوته أن الحديث معمول به عنده، ولذلك ذكره في كتابه)
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम का इरशाद है के “जो मुझ पर हर दिन पचास बार दुरूद भेजता है, में उस से क़यामत के दिन मुसाफ़हा करूंगा.”
हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु ग़ारे षौर में
हिजरत के वाक़िए में मनक़ूल है के जब हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु नबीए करीम सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम के साथ ग़ारे षौर तक पहुंचे, तो हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम से कहाः ख़ुदा के वास्ते आप अभी इस गुफा में दाख़िल न हो जाए. पेहले में अंदर जाता हुं, ताकि अगर उस में कोई मूज़ी (तकलीफ़ देने वाली) चीज़ (सांप, बिच्छु वग़ैरह) हो और वह तकलीफ़ पहोंचाए, तो मुझे तकलीफ़ पहुंचाए न के आप को.
फिर हज़रत अबु बक्र सिद्दीक रज़ि अल्लाहु अन्हु गुफा में दाख़िल हुए और उस को अच्छी तरह साफ़ किया. उन्होंने गुफा में कई सूराख़ देखे, तो उन्होंने अपने तेहबंद को फाड़ा और अकषर सूराख़ों को अपने तेहबंद के चीथड़ों से बंद कर दिया. मात्र दो सूराख़ बाक़ी रह गए (क्युंकि उन को बंद करने के लिए तेहबंद के चीथड़ों में सें कुछ नहीं बचा था) तो उन सूराख़ों पर अपना पैर रख कर बैठ गए.
फिर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम से अर्ज़ किया के अंदर तशरीफ़ लाईए. चुनांचे नबी सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम गुफा में दाख़िल हुए और हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु की गौद में अपना सर रख कर सो गए.
उसी दौरान एक सांप ने सूराख़ के अंदर से हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहु अन्हु के पैर में दंख मारा, लेकिन उन्होंने इस ड़र से अपनी जगह से हरकत नहीं की के कहीं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम जाग न जाऐं. आख़िरकार (तकलीफ़ की शिद्दत की वजह से) उन की आंखों से बेइख़्तियार आंसू निकल गए और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम के चेहरेए मुबारक पर गिरे.
जिस से आप की आंख खुल गई, तो आप सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम ने पूछाः अबू बक्र तुम्हें क्या हुवा? उन्होंने अर्ज़ कियाः ए अल्लाह के रसूल! मेरे मां-बाप आप पर क़ुर्बान! मुझे किसी ज़हरीले जानवर (सांप) ने काट लिया है. आप सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम ने अपना मुबारक थूक उन के पांव में दंख मारी हुई जगह पर लगा दिया, तो वह तकलीफ़ तुरंत दूर हो गई. (मिश्कातुल मसाबिह)
يَا رَبِّ صَلِّ وَسَلِّم دَائِمًا أَبَدًا عَلَى حَبِيبِكَ خَيرِ الْخَلْقِ كُلِّهِمِ