इमाम का चार तकबीरों से अधिक तकबीर केहना

अगर इमाम जनाज़े की नमाज़ में चार से अधिक तकबीर कहें, तो मुक़तदीयों को अधिक तकबीर में उन की इक़्तिदा(अनूसरता) नहीं करनी चाहिए,  बलकि उन को ख़ामोश रेहना चाहिए और जब इमाम फेर कर नमाज़ संपूर्ण करे तो वह भी सलाम फेर कर नमाज़ संपूर्ण करेंगे. अलबत्ता अगर मुक़तदीयों को इमाम की ज़ाईद तकबीरें सुनाई न दे, बलकि मुकब्बिर (वह आदमी जो बुलंद आवाज़ से तकबीर केहता है, ताकि लोग सुन सके) की ज़ाईद तकबीर सुनें, तो मुक़्तदियों को चाहिए के अधिक तकबीर में मुकब्बिर की इक़्तदा करे, क्युंकि उन को यह नहीं मालूम है के कौन सी तकबीर इमाम की तकबीर है. [१]

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[१](فلو كبر الإمام خمسا لم يتبع) لأنه منسوخ ولا متابعة فيه ولم يبين ماذا يصنع وعن أبي حنيفة روايتان في رواية يسلم للحال ولا ينتظر تحقيقا للمخالفة وفي رواية يمكث حتى يسلم معه إذا سلم ليكون متابعا فيما تجب فيه المتابعة وبه يفتي كذا في الواقعات ورجحه في فتح القدير بأن البقاء في حرمة الصلاة بعد فراغها ليس بخطأ مطلقا إنما الخطأ في المتابعة في الخامسة وفي بعض المواضع إنما لا يتابعه في الزوائد على الأربعة إذا سمع من الإمام أما إذا لم يسمع إلا من المبلغ فيتابعه وهذا حسن وهو قياس ما ذكروه في تكبيرات العيدين اهـ (البحر الرائق ٢/١٩٨)

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