
हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“ज़िक्र बड़ी बरकत की चीज़ है मगर उस की बरकत वहीं तक है के मुनकिरात (बुरे कामों) से बचा जाए, अगर एक व्यक्ति फ़र्ज़ नमाज़ न पढ़े और नफ़लें पढ़े तो षवाब तो होगा मगर फ़र्ज़ न पढ़ने का जो गुनाह है वह ज़ईफ़ (कम) कर देगा और कोई नफ़ा उन नफ़लों से ज़ाहिर न होगा यअनी यह के उस से आईन्दा आमाल में क़ुव्वत न होगी.” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, जिल्द नं-२, पेज नं-१६४)
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