हज़रत मौलाना अशरफ़ अली थानवी (रह.) ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमायाः
“यह ज़माना बहोत ज़्यादह फ़ितनों से भरा हुवा है. इस में तो इमान ही के लाले पड़े हैं. इसी वजह से में ने बुज़ुर्गाने दीन की सोहबत(संगात) को फ़र्ज़े ऐन(बहुत ज़रूरी) क़रार दिया है(घोषित किया है). में तो फ़तवा देता हुं के बुज़ुर्गाने दीन की सोहबत(संगात) इस ज़माने में फ़र्ज़े ऐन है और इस में शुबा(संदेह) क्या हो सकता है इसलिए के जिस चीज़ पर तजर्रबे(अनुभव) से दीन की हिफ़ाज़त, इमान की हिफ़ाज़त मौक़ुफ़ हो उस के फ़र्ज़ होने में क्या शुबे(संदेह) की गुंजाईश(जगह) है?” (मलफ़ूज़ाते हकीमुल उम्मत, हिस्सा-१, पेज नं-१०७)
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