हज़रत मौलाना मुहम्मद इल्यास साहब (रह़िमहुल्लाह) ने एक मर्तबा इर्शाद फ़रमाया:
मस्जिदें, मस्जिदे-नबवी (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) की बेटियां हैं, इसलिए जो काम हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) की मस्जिद में होते थे, वो सब काम मस्जिद में होने चाहिए।
नमाज़ के अलावा, हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम) की मस्जिद में तालीम और तर्बियत का काम भी होता था, और दीन की दावत के सिलसिले के सब काम भी मस्जिद ही से होते थे। दीन की तब्लीग या तालीम के लिये वुफूद की रवानगी मस्जिद ही से होती थी; यहां तक कि असाकिर का नज़्म भी मस्जिद ही से होता था।
हम चाहते हैं कि हमारी मस्जिदों में भी इसी तरीके पर यह सब काम होने लगें। (मल्फुज़ात हज़रत मौलाना मुहम्मद इल्यास रह़िमहुल्लाह, पेज १३२)