ज़कात इस्लाम के पांच बुनियादी अरकान में से एक अहम रुकन है। ज़कात सन २ हिजरी में रमज़ान के रोज़े से पेहले फर्ज़ हूई थी।
कुराने-करीम में बहुत सी आयत और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम की बहुत सी हदीस में ज़कात अदा करने की फ़ज़ीलत और अज़ीम सवाब बयान किया गया है।
हज़रत हसन रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया: ज़कात के ज़रिए अपने माल की हिफाज़त करो अपने बीमारों का सदके से इलाज करो और बला और मुसीबत की मौजों का दुआ और अल्लाह तआला के सामने आजिज़ी से इस्तिक़बाल करो।
एक दूसरी हदीस में वारिद है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व-सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया: जो शख़्स माल की ज़कात अदा करे, तो उस माल का शर उस से जुदा हो जाता है। (अल्-मु’जमुल-वस्त़, अर्-रक़म: १५७९)