हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हू के लिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पेशीन-गोई

हज-ए-विदा’ के मौके पर जब हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हू बिमार थे और उन्हें अपनी वफ़ात का अंदेशा था, तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे फ़रमाया:

ولعلك تخلف حتى ينفع بك أقوام ويضر بك آخرون

तुम ज़रूर ज़िन्दा रहोगे; यहां तक कि बहुत से लोगों को आप की वजह से फायदा पहुंचेगा और बहुत से लोगों को आप की वजह से नुकसान पहुंचेगा।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह पेशीन-गोई हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हू के हाथों पर क सरजमीने का़द्सिय्या की जीत की तरफ इशारा था जिससे मुसलमानों को फायदा हुआ और काफिरों को नुक्सान पहुंचा।

(पेशीन-गोई=आगे की बात बताना)

(हज-ए-विदा’= नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आखिरी हज जो उन्होंने सन् हिजरी 10 में किया था।)

(का़द्सिय्या= इराक़ का एक शहर जहां पर यह जंग हुई थी)

हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु के हाथों पर फतहे का़द्सिय्या के बारे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पेशीन-गोई

हज-ए-विदा’ के मौके पर मक्का मुकर्रमा में हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु बिमार हो गए थे और उन्हें अपनी वफ़ात का अंदेशा था।

जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनकी बीमार-पुर्सी के लिए तशरीफ़ लाए, तो वो रोने लगे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे पूछा: कियूं रो रहे हो? हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु ने जवाब दिया कि मुझे डर है कि मैं उस जगह से मेरी जान निकलेगी, जहां से मैं ने हिजरत की थी और यहां मरने से मेरी हिजरत का सवाब बर्बाद हो जाएगा।

उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु की तंदुरुस्ती के लिए तीन मर्तबा यह दुआ फ़रमाई: ऐ अल्लाह! सअ्द को शिफा अता फ़रमा!

फिर हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दरयाफ़्त किया: ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! मेरे पास बहुत ज़्यादा माल है और मेरी सिर्फ एक बेटी है, जिस की हालत अच्छी है (यानी वो खुश-हाल है)। क्या मैं अपने पूरे माल की वसियत कर सकता हूं (कि मेरी वफ़ात के बाद सदका़ कर दिया जाए) ? रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जवाब दिया: नहीं।

हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु ने फिर पूछा: क्या मैं अपने दो तिहाई माल की वसियत कर सकता हूं? (कि मेरी वफ़ात के बाद सद्का कर दिया जाए) रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जवाब दिया: नहीं।

हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु ने फिर पूछा कि मैं अपने आधे माल की वसियत कर सकता हूं? (कि मेरी वफ़ात के बाद सद्का कर दिया जाए) तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जवाब दिया: नहीं।

आखिरकार हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दरयाफ़्त किया कि क्या मैं अपने एक तिहाई माल की वसियत कर सकता हूं?(कि मेरी वफ़ात के बाद सदका़ कर दिया जाए।)

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: हां, तुम एक तिहाई की वसियत कर सकते हो; लेकिन एक तिहाई भी बहुत ज़्यादा है। दरअसल जो कुछ तुम अपने माल में से सदक़ा देते हो, वो सदका़ है और जो कुछ तुम अपने मातहतों पर खर्च करते हो, वो सदका़ है और जो कुछ तुम्हारी बीवी तुम्हारे माल में से खर्च करती है, वो सदका़ है और अपने बाल-बच्चों और घरवालों को खुश-हाल छोड़ना (तुम्हारी वफ़ात के बाद) उससे बेहतर है कि तुम उन्हें (ग़ुर्बत की हालत में) छोड़ दो कि वो लोगों के सामने हाथ फैला कर मांगें।

उसके बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत सअ्द रदि अल्लाहु ‘अन्हु को मुखातब करते हुए फ़रमाया कि तुम ज़रूर ज़िन्दा रहोगे; यहां तक कि बहुत से लोगों को आप की वजह से फायदा पहुंचेगा और बहुत से लोगों को आप की वजह से नुकसान पहुंचेगा।

बाज़ मुह़द्दिस का कहना है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की यह पेशीन-गोई सरज़मीने का़दसिया की फतह और जीत की तरफ इशारा था जिससे मुसलमानों को फायदा हुआ और काफ़िरों को नुक्सान पहुंचा।

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