शेखुल-हदीस हजरत मौलाना मुह़म्मद ज़करिया रहिमहुल्लाह ने एक मर्तबा इरशाद फ़रमाया:
मेरे प्यारो! एक बहुत ही ज़रूरी और अहम बात कहना चाहता रहा; मगर अब तक न केह सका.
तुम उलमा ए किराम हो, मुदर्रिस हो, बहुत से मदरसों के नाज़िम भी होंगे, ये मदारिस तुम्हारी बरकत से चल रहे हैं, अल्लाह त’आला कबूल फ़रमा दें और आपकी पढ़ने पढ़ाने को भी कबूल फ़रमाएं।
मेरे प्यारो! मैं एक बात की वसीयत करता हूं, नसीहत करता हूं, तुम अपने मदरसों के चलाने में ऐसा तर्ज़ इख़्तियार न करो कि जिससे किसी दूसरे मदरसे की तौहीन और तहक़ीर होती हो।
माशा अल्लाह, हिंदू-ओ-पाक में बहुत से मदरसे चल रहे हैं, सभी को इसका ख्याल रखना चाहिए।
यह दूसरे को गिराना बहुत ही मुहलिक बीमारी है, जो दरअसल तकब्बुर और घमंड का नतीजा है। अपने अंदर तवाज़ु’ (विनम्रता) पैदा करो, अपने बड़ों को देखो।