कबर पर फुल चढ़ाने का हुकम
सवाल: शरीयत में फुल चढ़ाना कैसा है?
जवाब: कबर पर फुल चढ़ाना एक ऐसा अमल है, जिस का शरीअत में कोई सुबूत नहीं है; इसलिए उस से किनारा करना (बचना) ज़रुरी है।
मय्यत के जिस्म से अलग हो जाने वाले आ’ज़ा (शरीर के अंग हाथ, पाँव, सिर वगैरह) का दफ़न करना
सवाल: उन आ’जा़ को दफ़न करने का क्या तरीका है जो मय्यत के जिस्म से अलग हो गए हों?
जैसे एक शख्स का किसी हादसा में इंतिक़ाल हो गया और उसके जिस्म के कुछ आ’जा़ अलग हो गए, तो उसके आ’जा़ को कैसे दफ़न किया जाए?
जवाब: जिस्म के उन आ’जा़ को किसी कपड़े में लपेटा जाए और मय्यत के साथ दफ़न कर दिया जाए।
मय्यत की तरफ से किसी मख्सूस जगह में मदफून होने की वसीयत
सवाल: अगर किसी शख्स ने किसी मख्सूस कब्रिस्तान में मदफून होने की वसीयत की, तो क्या मय्यत के घर वाले मय्यत की वसीयत को पूरा न करने की वजह से गुनेहगार होंगे?
कभी मय्यत के घर वालों के लिए ऐसी वसीयत का पूरा करना मुश्किल होता है, तो क्या मय्यत के घर वाले मय्यत की वसीयत पूरी न करने की वजह से गुनेहगार होंगे?
जवाब: किसी खास जगह या मख्सूस कब्रिस्तान में मदफून होने की वसीयत को पूरा करना शरीयत में लाज़िम नहीं है। मगर बावजूद यह के उस को पूरा करना लाजिमी नहीं है अगर घर वालो के लिए मय्यत की ख्वाहिश को पूरा करना मुमकिन हो तो उनके लिए ऐसा करना बेहतर होगा बशर्ते कि वो जगह जहां मरने वाले ने दफ़न होने की ख्वाहिश की थी, उस जगह से दूर ना हो जहां उसकी वफात हुई है।
अगर वो जगह जहां उसका इन्तेक़ाल हुआ है, उस जगह से दूर है जहां उसने दफ़न करने की वसीयत की है, तो उसको उसी जगह दफ़न किया जाए जहां उसका इन्तेक़ाल हुआ है।
चुंकि इस वसीयत को पूरा करना शरीयत में लाज़िम नहीं है, इसलिए मय्यत के घर वाले इस वसीयत को पूरा न करने की वजह से गुनेहगार नहीं होंगे।
मुसलमान की लाश को उसके गैर-मुस्लिम रिश्तेदारों को सौंपना
सवाल:- अगर मुसलमान मैय्यत का कोई मुसलमान रिश्तेदार न हों, और मुसलमान लोग मैय्यत के गैर-मुस्लिम रिश्तेदारों के साथ यह मु’आमला तय करें, कि वो उसकी लाश को उनसे लेकर उसको गुसल, कफन और जनाजा़ की नमाज़ पढ़कर उसको वापस उनके हवाले कर देंगे, तो क्या ऐसा करना जायज़ है या जायज़ नहीं है?
जवाब:- अगर मैय्यत मुसलमान है तो उसका दफ़न भी इस्लामी तरीके से किया जाना चाहिए। मैय्यत को दफनाने के लिए गैर-मुसलमानों को सौंपना जायज़ नहीं है। अगर मुस्लिम मैय्यत को मुसलमान उसके गैर-मुस्लिम रिश्तेदारों को हवाले कर देंगे तो वो गुनाहगार होंगे।
लेकिन अगर काफ़िर हुकूमत के क़ानून की वजह से मुस्लिम मैय्यत की लाश पर मुस्लमानों को काबू न हों और वो उसे अपने ग़ैर-मुस्लिम रिश्तेदारों को सौंपने पर मजबूर हों, तो इस सूरत में अल्लाह त’आला के वहां उनकी कोई पकड़ नहीं होगी।
मैय्यत के बाकी कर्ज के बारे में ऐलान
सवाल:- क्या जनाज़े की नमाज़ से पहले या बाद में लोगों के सामने यह ऐलान करना जायज़ है कि जिन लोगों से मैय्यत ने कर्ज़ लिया है, वो मैय्यत के घर वालों से अपना क़र्ज़ माँग लें?
जवाब:- हां, यह ऐलान करना जाइज़ है कि मैय्यत के वारिस मैय्यत के क़र्ज़ो को उसकी तरफ से अदा करेंगे; इसलिए वो वारिसों से अपने क़र्ज़ो का मुतालबा करें।