اللهم اغفر للأنصار، ولأبناء الأنصار، وأبناء أبناء الأنصار (صحيح مسلم، الرقم: ۲۵٠٦)
रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने अन्सार के लिए ख़ुसूसी दुआ फ़रमाई
“ए अल्लाह, अन्सार की मग़फिरत फ़रमा, अन्सार की मग़फ़िरत फ़रमा, अन्सार की औलाद की मग़फ़िरत फ़रमा और अन्सार की औलाद की औलाद की मग़फ़िरत फ़रमा.”
(सहीह मुस्लिम, रक़म नं-२५०६)
सहाबए किराम (रज़ि.) की क़ुर्बानी रसूले करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के लिए
हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) का मकान शुरूअ में हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) (के मकान) से ज़रा दूर था. एक मर्तबा हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने (हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) से) इरशाद फ़रमाया के मेरा दिल चाहता था के तुम्हारा मकान तो (मेरे मकान से) क़रीब ही हो जाता. हज़रत फ़ातिमा (रज़ि.) ने अर्ज़ किया के हारिषा (रज़ि.) का मकान आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के (मकान से) क़रीब है, उन से फ़रमा दें के मेरे मकान से बदल लें. हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमाया के उन से पेहले भी तबादला हो चुका है, अब तो शरम आती है (यअनी इस से पेहले उन्होंने मेरी दरख़्वास्त पर अपना एक मकान बदल लिया अब तो मुझे शरम आती है के में दोबारा उन से पूछुं).
हारिषा (रज़ि.) को उस की इत्तेलाअ हुई तुरंत हाज़िर हो कर अर्ज़ कियाः या रसूलुल्लाह मुझे मालूम हुवा है के आप फ़ातिमा (रज़ि.) का मकान अपने क़रीब चाहते हैं, यह मेरे मकानात मौजूद हैं, उन से ज़्यादा क़रीब कोई मकान भी नहीं, जो पसन्द हो बदल लें, या रसूलुल्लाह में और मेरा माल तो अल्लाह और उस के रसूल (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ही का है, या रसूलुल्लाह ख़ुदा की क़सम ! जो माल आप ले लें वह मुझे ज़्यादा पसन्द है उस माल से जो मेरे पास रहे.
हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमायाः सच केहते हो और बरकत की दुआ दी और मकान बदल लिया. (अत तबक़ातुल कुबरा, फ़ज़ाईले आमाल, हिकायते सहाबा, पेज नं-१७२)