शाबान की पंदरहवीं शब की फ़ज़ीलत

सवाल – में ने एक अरब शैख़ से सुना के शबे बराअत की फ़ज़ीलत के सिलसिले में जितनी भी अहादीष वारिद हुई वह सब ज़ईफ़ है, लेकिन उन में से कोई हदीष सहीह नहीं है. लिहाज़ा इस शब और उस के अगले दिन को महत्तवता देने की ज़रूरत नहीं. क्या यह बात दुरूस्त है? अगर शबे बराअत के मुतअल्लिक़ सहीह अहादीष मनक़ूल है, तो मेहरबानी कर के बयान किजीए.

जवाब – पंदरहवीं शाबान की रात (शबे बराअत) की फ़ज़ीलत के बारे में मुतद्दद सहीह अहादीष मनक़ूल हैं. मिनजुम्ला उन सहीह अहादीष में से निम्नलिखित तीन अहादीष हैंः

عن أسامة بن زيد رضي الله عنهما قال قلت يا رسول الله لم أرك تصوم من شهر من الشهور ما تصوم من شعبان قال ذاك شهر يغفل الناس عنه بين رجب ورمضان وهو شهر ترفع فيه الأعمال إلى رب العالمين وأحب أن يرفع عملي وأنا صائم رواه النسائي (الترغيب والترهيب ۲/٤۸)

हज़रत उसामा बिन ज़ैद (रज़ि.) से रिवायत है के एक मर्तबा में ने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम)से अर्ज़ कियाः या रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) जितने रोज़े आप माहे शाबान में रखते हैं में ने आप को किसी और महीने में इतने रोज़े रखते हुए नहीं देखा (उस की क्या वजह है?) रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने जवाब दियाः शाबान का महीना वह महीना है जो रजब और रमज़ान के बीच में आता है और बहोत से लोग इस (महीने की फ़ज़ीलत) से ग़ाफ़िल होते हैं. इसी महीने में बन्दों के आमाल परवरदिगारे दो जहां की बारगाह में उठाए जाते हैं. और मुझे यह पसन्द है के मेरे आमाल उठाए जाएं, इस हाल में जबके में रोज़ेदार हुं.

وعن معاذ بن جبل رضي الله عنه عن النبي صلى الله عليه وسلم قال يطلع الله إلى جميع خلقه ليلة النصف من شعبان فيغفر لجميع خلقه إلا لمشرك أو مشاحن رواه الطبراني وابن حبان في صحيحه (الترغيب والترهيب ۲/۵۱)

हज़रत मुआज़ बिन जबल (रज़ि.) से रिवायत है के नबीए अकरम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः अल्लाह तआला शाबान की पंदरहवीं रात में अपनी तमाम मख़लुक़ की तरफ़ नज़रे रहमत फ़रमाते हैं फिर अपनी जमीअ मख़लुक़ को सिवाए मुशरिक और मुशाहिन (दिल में किना रखने वाले) के बख़्श देते हैं.

وعن عائشة رضي الله عنها أن النبي صلى الله عليه وسلم كان يصوم شعبان كله قالت قلت يا رسول الله أحب الشهور إليك أن تصومه شعبان قال إن الله يكتب فيه على كل نفس ميتة تلك السنة فأحب أن يأتيني أجلي وأنا صائم رواه أبو يعلى وهو غريب وإسناده حسن (الترغيب والترهيب ۲/٤۹)

उम्मुल मोमिनीन सय्यिदा आंयशा सिद्दीक़ा (रज़ि.) से रिवायत है के नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) शाबान का पूरा महीना रोज़ा रखते थे. हज़रत आंयशा (रज़ि.) फ़रमाती हैं के में ने सवाल कियाः या रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ! क्या यह शाबान का महीना दूसरे महीनों के मुक़ाबले में आप को ज़्यादा महबूब है के आप शाबान में रोज़ा रखे? आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने जवाब दियाः (में इस महीन में ज़्यादा रोज़ा इसी वजह से रखता हुं, क्युंकि) अल्लाह तआला इस महीने में इस साल के हर मरने वाले की मौत लिखते हैं. इसलिए मुझे यह बात महबूब है के मेरी मौत का फ़ैसला आए, उस हाल में जबके में रोज़े से हुं.

जहां शाबान के रोज़े की बात है, तो बहोत सी अहादीष एसी हैं जो हमें साफ़ तौर पर बताती हैं के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने शाबान के महीने में किस तरह रोज़ा रखा. बाज़ अहादीष में मज़कूर है के शाबान के पूरे महीने में नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने रोज़ा रखा और बाज़ अहादीष में मनक़ूल है के शाबान के अकषर हिस्से में आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने रोज़ा रखा.

उस के अलावा यह बात भी षाबित है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) की आदते मुबारका यह थी के आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) अय्यामे बीज़ में रोज़ा रखते थे (यअनी हर महीन की तैरहवीं, चौदहवीं और पंदरहवीं तारीख़ पर रोज़ा रखते थे). मज़कूरा बाला अहादिष की रोशनी में हमें मालूम होता है के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) पंदरहवीं शाबान के दिन रोज़ेदार थे.

लिहाज़ा जब यह दिन (शाबान की पंदरहवीं तारीख़ का दिन) हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के रोज़ा रखने की आदत के दिनों में से था, तो अगर कोई शख़्स सिर्फ़ यह एक दिन में रोज़ा रखे, तो जाईज़ है. और उस का अमल सुन्नत के मुताबिक है, (गो अय्यामें बीज़ के तीन दीन में रोज़ रखना बेहतर है).

जहां पंदरहवीं शाबान के दिन में रोज़ा रखने की हदीष की बात है, तो वह हदीष महद्दिषीन के यहां ज़ईफ़ जिद्दन(बहोत ज़्यादा ज़ईफ़) क़रार दि गई है, लेकिन इस हदीष पर अमल करना जाईज़ होगा, क्युंकि यह हदीष दूसरी सहीह अहादीष के ज़िम्न में आती है जिन में आप (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) के रोज़ा रखने की आदत का बयान आया है.

मज़ीद यह के एक दूसरी सहीह हदीष में मनक़ूल है के जब रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) से शाबान के महीने में रोज़ा रखने की वजह पूछी गई, तो रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने फ़रमायाः इसी महीने में बंदो के आमाल परवरदिगारे दो जहां के बारगाह में उठाए जाते हैं. और मुझे यह पसन्द है के मेरे आमाल इस हाल में उठाए जाऐं, जबके में रोज़ेदार हुं.

इस हदीष से हमें मालूम हुवा के रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) शाबान की पंदरहवीं तारीख़ के दिन में रोज़ेदार थे, क्युंकि इस से पिछली रात में लोगों के आमाल पेश होते हैं जैसे दूसरी अहादीष से मालूम होता है और नबीए करीम (सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया के पंदरहवीं शब में खड़े हो जावो इबादत में और अगले दिन में रोज़ा रखो.

लिहाज़ा मज़कूरा बाला दलाईल से वाज़िह होता है के पंदरहवीं शाबान में रोज़ा रखने में कोई मुज़ाईक़ा नहीं है.

अल्लाह तआला ज़्यादा जानने वाले हैं.

عن عائشة قالت فقدت رسول الله صلى الله عليه وسلم ليلة فخرجت فإذا هو بالبقيع فقال أكنت تخافين أن يحيف الله عليك ورسوله قلت يا رسول الله إني ظننت أنك أتيت بعض نسائك فقال إن الله عز وجل ينزل ليلة النصف من شعبان إلى السماء الدنيا فيغفر لأكثر من عدد شعر غنم كلب (سنن الترمذي، الرقم: ۷۳۹)

وفي رواية للنسائي قالت لم يكن رسول الله صلى الله عليه و سلم لشهر أكثر صياما منه لشعبان كان يصومه أو عامته (الترغيب والترهيب ۲/۵٠)

وفي رواية للبخاري ومسلم قالت لم يكن النبي صلى الله عليه و سلم يصوم شهرا أكثر من شعبان فإنه كان يصوم شعبان كله وكان يقول خذوا من العمل ما تطيقون فإن الله لا يمل حتى تملوا وكان أحب الصلاة إلى النبي صلى الله عليه و سلم ما دووم عليها وإن قلت وكان إذا صلى صلاة داوم عليها (الترغيب والترهيب ۲/۵٠)

وعن أم سلمة رضي الله عنها قالت ما رأيت رسول الله صلى الله عليه و سلم يصوم شهرين متتابعين إلا شعبان ورمضان رواه الترمذي وقال حديث حسن وأبو داود ولفظه قالت لم يكن النبي صلى الله عليه و سلم يصوم من السنة شهرا تاما إلا شعبان كان يصله برمضان (الترغيب والترهيب ۲/۵٠)

حدثنا الحسن بن علي الخلال قال حدثنا عبد الرزاق قال أنبأنا ابن أبي سبرة عن إبراهيم بن محمد عن معاوية بن عبد الله بن جعفر عن أبيه عن علي بن أبي طالب قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا كانت ليلة النصف من شعبان فقوموا ليلها وصوموا نهارها فإن الله ينزل فيها لغروب الشمس إلى سماء الدنيا فيقول ألا من مستغفر لي فأغفر له ألا مسترزق فأرزقه ألا مبتلى فأعافيه ألا كذا ألا كذا حتى يطلع الفجر (سنن ابن ماجة، الرقم: ۱۳۸۸)

حدثنا عبد الله بن يوسف الأصبهاني أخبرنا أبو إسحاق إبراهيم بن أحمد بن فراس المكي حدثنا محمد بن علي بن زيد الصائغ حدثنا الحسن بن علي حدثنا عبد الرزاق حدثنا ابن أبي سبرة عن إبراهيم بن محمد عن معاوية بن عبد الله بن جعفر عن أبيه عن علي بن أبي طالب قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا كانت ليلة النصف من شعبان فقوموا ليلتها وصوموا يومها فإن الله تعالى يقول ألا من مستغفر فأغفر له ألا من مسترزق فأرزقه ألا من سائل فأعطيه ألا كذا ألا كذا حتى يطلع الفجر وأخبرنا أبو عبد الله الحافظ حدثنا علي بن حمشاذ حدثنا إبراهيم بن أبي طالب حدثنا الحسن بن علي الحلواني فذكره بإسناده وذكر فيه لفظ النزول وقال بدل السائل ألا مبتلى فأعافيه ألا كذا غير أنه قال عن محمد بن عبد الله بن جعفر عن أبيه ولم يذكر عليا قال إبراهيم بن أبي طالب حدثنا إبراهيم بن محمد مولى زينب بنت جحش (شعب الإيمان للإمام البيهقي، الرقم: ۳۵٤۲)

قال السيوطي رحمه الله كتصانيف البيهقي فقد التزم أن لا يخرج فيها حديثا يعلمه موضوعا . انتهى. (تدريب الراوي ۱/۲۳۷)

وقد اعتمد السيوطي وابن عراق رحمهما الله على قول البيهقي هذا.

قال السيوطي رحمه الله حدثنا علي بن محمد البصري أنبأنا مالك بن يحيى أبو غسان حدثنا علي بن عاصم عن الفضل بن عيسى الرقاشي عن محمد بن المنكدر عن جابر بن عبد الله قال قال رسول  الله صلى الله عليه وسلم لما كلم الله موسى يوم الطور كلمه بغير الكلام الذي كلمه يوم ناداه فقال له موسى يا رب ما هذا كلامك الذي كلمتني به قال يا موسى إنما كلمتك بقوة عشرة آلاف لسان ولي قوة الألسن كلها وأنا أقوى من ذلك فلما رجع موسى إلى بني إسرائيل قالوا يا موسى صف لنا كلام الرحمن قال سبحان الله الآن لا أستطيعه قالوا فشبه لنا قال ألم تروا إلى صوت الصواعق التي تقتل فإنه قريب منه وليس به لبس بصحيح والفضل متروك قلت في الحكم بوضعه نظر فإن الفضل لم يتهم بكذب وأكثر ما عيب عليه الندرة وهو من رجال ابن ماجه وهذا الحديث أخرجه البزار في مسنده حدثنا سليمان بن موسى حدثنا علي بن عاصم به وأخرجه في كتاب الأسماء والصفات وهو قد التزم أن لا يخرج في كتابه حديثا يعلم أنه موضوع وأخرجه ابن أبي حاتم في تفسيره وقد التزم أن يخرج فيه أصحّ ما ورد ولم يخرج حديثا موضوعا ألبتة وأخرجه أبو نعيم في الحلية وله شاهد عن كعب موقوفا أخرجه عبد الرزاق وابن جرير وابن المنذر وابن أبي حاتم في تفاسيرهم والحكيم الترمذي في نوادر الأصول والبيهقي في الأسماء والصفات ولبعضه شاهد عن محمد بن كعب القرظي موقوفا أخرجه ابن جرير وابن المنذر وأخرجه عن أبي الحويرث عبد الرحمن بن معاوية موقوفا وأخرجه ابن المنذر وابن أبي حاتم والحاكم في المستدرك وصححه والله أعلم. (اللآلىء المصنوعة في الأحاديث الموضوعة ۱/۱۲)

قال الحافظ جلال الدين السيوطي رحمه الله في بعض أجوبته إذا علمتم بالحديث أنه في تصانيف المنذري صاحب الترغيب والترهيب فارووه مطمئنين. (التعليقات الحافلة على الأجوبة الفاضلة صـ ۱۲٠)

(شعبان بين رجب وشهر رمضان تغفل الناس عنه) أي عن صومه (ترفع فيه) أي في ليلة النصف منه (أعمال العباد) للعرض على الله (فأحب أن لا يرفع عملي إلا وأنا صائم) أي فأحب أن أصوم شعبان لذلك (التيسير بشرح الجامع الصغير للعلامة المناوي رحمه الله ۲/۷۷)

عن عثمان بن محمد بن المغيرة بن الأخنس، قال: تقطع الآجال من شعبان إلى شعبان، قال: إن الرجل لينكح، ويولد له وقد خرج اسمه في الموتى (شعب الايمان للإمام البيهقي رقم ۳۵۵۸)

روى البغوي عن محمد بن الميسرة بن الأخفش أن رسول الله صلى الله عليه وسلم قال يقطع الآجال من شعبان الى شعبان حتى ان الرجل لينكح ويولد له ولقد اخرج اسمه فى الموتى- وروى ابو الضحى عن ابن عباس ان الله يقضى الاقضية فى ليلة النصف من شعبان ويسلمها الى أربابها فى ليلة القدر. (التفسير المظهري للقاضي ثناء الله ۸/۳٦۸)

وذكر الآلوسي في روح المعاني رواية عن ابن عباس رضي الله تعالى عنهما ما نصه: إنه رضي الله عنه قال: تقضى الأقضية كلها ليلة النصف من شعبان وتسلم إلى أربابها ليلة السابع والعشرين من شهر رمضان. واعترض بما ذكر على الاستدلال بالظواهر على أن الليلة المذكورة هي ليلة القدر لاليلة النصف من شعبان ومن تدبر علم أنه لا يخدش الظواهر- انتهى. وبه قال شيخنا التهانوي في بيان القرآن، وإنه هذا على تقدير ثبوت ما رأى في ليلة البراءة من الأخبار.
فحاصل الكلام: إن الصحيح الذي اعتمد عليه الجمهور من المفسرين والمحدثين والذي هو ظاهر القرآن حيث قال: شهر رمضان الذي أنزل فيه القرآن. هو أن المراد بالليلة المباركة في آية الدخان هي ليلة القدر في شهر رمضان، لا ليلة النصف من شعبان. وما روي من الأحاديث والأخبار في فضل ليلة النصف من شعبان فهذا أمر مستقل لا يتعلق ثبوته بهذه الروايات، وهي وإن كانت لا تخلو عن ضعف ولكنها قد تشدت بتعدد الطرق وقبول جمع من العلماء، ومثل هذا يعمل به في فضائل الأعمال. والله أعلم (أحكام القرآن للعلامة محمد شفيع عثماني رحمه الله ٤/۱۹۳)

فتاوى محمودية (۱۵/۲۲٦)

दारूल इफ़्ता, मद्रसा तालीमुद्दीन

इसिपिंगो बीच, दरबन, दक्षिण अफ्रीका

Source: http://muftionline.co.za/node/548

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