जिन लोगों के साथ निकाह हराम है
शरीअत ने निम्नलिखित लोगों से निकाह करने को हराम क़रार दियाः
(१) महारिम यअनी अपने महरम से निकाह करना जाईज़ नहीं है. निम्नलिखित लोग आदमी महारिम में दाख़िल हैं. लिहाज़ा उन से निकाह करना जाईज़ नहीं है और अगर उन से निकाह कर लिया जाए, तो वह निकाह बातिल होगा.
(अ) फ़ुरूअ यअनी औलाद, पोते, पोतियां, पड़पोते, पड़पोतियां और नवासे, नवासियां वग़ैरह
(ब) उसूल यअनी वालिदैन, दादा, दादी और नाना, नानी वग़ैरह
(ज) भाई और बहनें
(द) चचा, फूफियां, मामू और ख़ालाऐं
(र) भतीजे, भतीजियां, भांजे और भांजियां
(स) दामाद और बहूएं
(श) ससुर और सास. [१]
(२) एक आदमी के लिए बयत वक़्त दो बहनों से निकाह करना जाईज़ नहीं है, अगर कोई शख़्स किसी औरत से शादी करे, जबकि उस औरत की बहन पेहले से उस शख़्स के निकाह मे थी, तो दूसरी बहन का निकाह बातिल होगा.
अलबत्ता अगर एक बहन का इन्तिक़ाल हो जाए, तो शौहर के लिए दूसरी बहन से निकाह करना जाईज़ होगा. इसी तरह अगर शौहर अपनी बीवी को तलाक़ दे दे और उस की इद्दत गुज़र जाए, तो शौहर के लिए बीवी की बहन से निकाह करना जाईज़ होगा. [२]
(३) अगर एक औरत ने दो लड़कियों को दूध पिलाया हो, तो उन दोनों लड़कियों के लिए एक साथ एक आदमी से निकाह करना जाईज़ नहीं होगा, क्युंकि वह दोनों रज़ाई बहनें (पालक बहनें) हैं और जिस तरह एक साथ दो हक़ीक़ी बहनें (असली बहनें) एक आदमी के साथ निकाह नहीं कर सकती हैं इसी तरह दो रज़ाई बहनें (पालक बहनें) भी एक साथ एक आदमी से निकाह नहीं कर सकती हैं. [३]
(४) अगर कोई शख़्स किसी औरत से निकाह करे और उस को तलाक़ दे दे, तो उस औरत की मां (उस शख़्स की साबिक़ सास (पूर्व सास)) उस शख़्स के लिए हराम होगी, ख़्वाह उस शख़्स ने अपनी बीवी से हमबिस्तरी (समलैंगिकता) कि हो अथवा न कि हो, क्युंकि किसी औरत के साथ मात्र निकाह कर लेने से उस की मां (सास) उस आदमी पर हराम हो जाती है. [४]
(५) अगर किसी शख़्स ने किसी औरत से निकाह किया और उस औरत को तलाक़ दे दी, तो उस शख़्स के लिए उस औरत की बेटी से निकाह करना जाईज़ होगा, बशर्त यह के उस ने अपनी बीवी से हमबिस्तरी (समलैंगिकता) न की हो अथवा अपनी बीवी को शहवत (हवस) के साथ न छुया हो. अलबत्ता अगर उस ने अपनी बीवी से हमबिस्तरी (समलैंगिकता) कर ली हो अथवा अपनी बीवा को शहवत (हवस) के साथ छुया हो, तो उस शख़्स के लिए उस औरत की बेटी के साथ निकाह करना जाईज़ नहीं होगा. [५]
(६) किसी एक शख़्स के लिए जाईज़ नहीं है के वह किसी औरत और उस की भतीजी या भांजी के साथ बयक वक़्त निकाह करे. अगर कोई शख़्स किसी औरत और उस की भतीजी अथवा भांजी के साथ बयक वक़्त निकाह करे, तो दोनों निकाह में से दूसरा निकह बातिल होगा. अलतबत्ता अगर वह उस औरत (फूफी अथवा ख़ाला) को तलाक़ दे दे फिर वह फूफी अथवा ख़ाला अपनी इद्दत पूरी कर ले तो उस शख़्स के लिए उस औरत की भतीजी अथवा भांजी से निकाह करना जाईज़ होगा, अगर उस के बरअक्स हो (भतीजी अथवा भांजी को तलाक़ दे दे और इद्दत के बाद उस औरत की फूफी अथवा ख़ाला से निकाह कर ले) तो भी जाईज़ होगा. [६][७][८]
हदाया और गेहने का वापस लेना
सवालः- क्या तलाक़ की सूरत में शौहर अपनी बीवी से सारे हदाया और गेहने जो उस ने दिए गए थे वापस ले सकता है और क्या उस के लिए वापस लेना जाईज़ है?
जवाबः- जो कुछ हदाया और गहने शौहर ने अपनी बीवी को दिए वह बीवी की मिलकियत में दाख़िल हो गई हैं. शौहर के लिए उन हदाया और गहने का वापस लेना जाईज़ नहीं है. अगर शौहर वापस ले ले तो यह ज़ुल्म और हराम होगा और वह गुनहगार होगा. [९]
[१] (لا يحل للرجل أن يتزوج بأمه ولا بجداته من قبل الرجال والنساء) لقوله تعالى حرمت عليكم امهٰتكم وبناتكم والجدات أمهات إذ الأم هي الأصل لغة أو ثبتت حرمتهن بالإجماع (ولا ببنته لما تلونا ولا ببنت ولده وإن سفلت) للإجماع (ولا بأخته ولا ببنات أخته ولا ببنات أخيه ولا بعمته ولا بخالته) لأن حرمتهن منصوص عليها في هذه الآية (وتدخل فيها العمات المتفرقات والخالات المتفرقات وبنات الإخوة المتفرقين) لأن جهة الاسم عامة (ولا بأم امرأته التي دخل بها أو لم يدخل) لقوله تعالى وامهٰت نسائكم من غير قيد الدخول (ولا ببنت امرأته التي دخل بها) لثبوت قيد الدخول بالنص سواء كانت في حجره أو في حجر غيره لأن ذكر الحجر خرج مخرج العادة لا مخرج الشرط ولهذا اكتفي في موضع الإحلال بنفي الدخول (الهداية ۲/۳٠۷)
[२] (ولا يجمع بين أختين نكاحا ولا يملك يمين وطأ) لقوله تعالى وان تجمعوا بين الاختين (الهداية ۲/۳٠۷)
ولا يصلح للرجل أن يجمع بين امرأتين ذو محرم أو محرم من رضاع وإن تزوجهما في عقدة واحدة فرق بينه وبينهما … وكذلك لا يحل للرجل أن يتزوج امرأة وأختها تعتد منه أو عمتها أو خالتها أو ابنة أختها أوابنة أخيها … وإذا تزوج إحداهما بعد الأخرى فرق بينه وبين الأخرى (الأصل للشيباني ۱٠/۱۸۳)
أما لو ماتت المرأة فتزوج بأختها بعد يوم جاز (مجمع الانهر ۱/۳۲٤)
[३] (و) يحرم (الجمع بين الأختين) ولو رضاعا (نكاحا) أي من جهة النكاح (مجمع الأنهر ۱/۳۲٤)
[४] (قوله وأم امرأته) بيان لما ثبت بالمصاهرة لقوله تعالى وأمهٰت نسائكم أطلقه فلا فرق بين كون امرأته مدخولا بها أو لا وهو مجمع عليه عند الأئمة الأربعة وتوضيحه في الكشاف ويدخل في لفظ الأمهات جداتها من قبل أبيها وأمها وإن علون (البحر الرائق ۳/۱٠٠)
[५] (القسم الثاني المحرمات بالصهرية) وهي أربع فرق … (والثانية) بنات الزوجة وبنات أولادها وإن سفلن بشرط الدخول بالأم كذا في الحاوي القدسي سواء كانت الابنة في حجره أو لم تكن كذا في شرح الجامع الصغير لقاضي خان (الفتاوى الهندية ۱/۲۷٤)
[६] ولا يجمع بين المرأة وعمتها أو خالتها أو ابنة أخيها ولا على ابنة أختها لقوله عليه الصلاة والسلام لا تنكح المرأة على عمتها ولا على خالتها ولا على ابنة أخيها أو ابنة أختها وهذا مشهور تجوز الزيادة على الكتاب بمثله ولا يجمع بين امرأتين لو كانت إحداهما رجلا لم يجز له أن يتزوج بالأخرى لأن الجمع بينهما يفضي إلى القطيعة والقرابة المحرمة للنكاح محرمة للقطع ولو كانت المحرمية بينهما بسبب الرضاع يحرم لما روينا من قبل (الهداية ۲/۳٠۸)
[७] وإن تزوج إحداهما بعد الأخرى جاز نكاح الأولى وفسد نكاح الثانية ولا يفسد نكاح الأولى لفساد نكاح الثانية لأن الجمع حصل بنكاح الثانية فاقتصر الفساد عليه ويفرق بينه وبين الثانية (بدائع الصنائع ۳/٤۳۸)
[८] وكما لا يجوز للرجل أن يتزوج امرأة في نكاح أختها لا يجوز له أن يتزوجها في عدة أختها وكذلك التزوج بامرأة هي ذات رحم محرم من امرأة تعتد منه (بدائع الصنائع ۳/٤۳۹)
وإذا طلق امرأته طلاقا بائنا أو رجعيا لم يجز له أن يتزوج بأختها حتى تنقضي عدتها (الهداية ۱/۱۸۸)
[९] وقوله تعالى: وآتيتم إحداهن قنطارا فلا تأخذوا منه شيئا يدل على أن من وهب لامرأته هبة لا يجوز له الرجوع فيها لأنها مما آتاها وعموم اللفظ قد حظر أخذ شيء مما آتاها من غير فرق بين المهر وغيره (أحكام القرآن للجصاص ۲/۱۳۹)
عن أبي حرة الرقاشي عن عمه أن النبي صلى الله عليه وسلم قال لا يحل مال امرئ مسلم إلا عن طيب نفس (سنن الدارقطني، الرقم: ۲۸۸٦)
عن سعيد بن زيد رضي الله عنه قال سمعت النبي صلى الله عليه وسلم يقول من أخذ شبرا من الأرض ظلما فإنه يطوقه يوم القيامة من سبع أرضين (صحيح مسلم، الرقم: ۱٤٠)
قال: (ولا يرجع أحد الزوجين فيما وهبه للآخر). وذلك لما حدثنا عبد الباقي بن قانع ثنا ابن غنام بالكوفة قال: حدثنا أبو كريب قال: حدثنا مصعب بن المقدام عن خارجة بن مصعب عن أبي الحسين عبد الله بن عمرو بن أمية الضمري عن أبيه قال سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: من أعطى امرأته عطية، فهي له صدقة. فقال له عمر: لتأتيني بمن يشهد على هذا. فقال: عائشة سمعت هذا، فأرسلوا إلى عائشة، فقالت: صدق. سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول ذلك. فلما لم يصح الرجوع في الصدقة، لم يصح في الهبة الرجوع، إذ كانت بمثابة الصدقة. وإذا لم يصح رجوع الزوج فيما وهبه لامرأته بدلالة السنة، لم يصح في الهبة رجوعها أيضًا فيما تهبه له، لأن أحدًا لم يفرق بينهما. (شرح مختصر الطحاوي للجصاص ٤/۳۳)
لا يجوز التصرف في مال غيره بلا إذنه ولا ولايته (الدر المختار ٦/۲٠٠)
(ويمنع الرجوع فيها) حروف (دمع خزقه) يعني الموانع السبعة الآتية … (والزاي الزوجية وقت الهبة فلو وهب لامرأة ثم نكحها رجع ولو وهب لامرأته لا) كعكسه (الدر المختار ۵/٦۹۹-۷٠٤)
(والزاي الزوجية) أي الزوجية مانعة من الرجوع لأن المقصود فيها الصلة أي الإحسان كما في القرابة (مجمع الأنهر في شرح ملتقى الأبحر ۲/۳٦۲)